दण्ड प्रक्रिया संहिता का इतिहास लगभग 122 वर्ष पुराना होने आया है। व्यवस्थित रूप से यह संहिता प्रथम बार सन 1898 में 'दण्ड प्रक्रिया संहिता'1898 के रूप में हमारे सामने आई थी। उस समय इसे जम्मू कश्मीर, नागालैंड एवं असम से जनजातीय क्षेत्रो को छोड़कर समस्त भारत पर लागू किया गया था। समय समय पर आवश्कयतानुसार दण्ड प्रक्रिया संहिता में संशोधन होते रहे। सबसे महत्वपूर्ण संशोधन सन 1923 व 1955 में हुये, ये संशोधन दण्ड प्रक्रिया संहिता को अत्यंत विस्तृत एवं प्रक्रिया को सरल बनाने तथा यथासम्भव शीघ्र विचारण की व्यवस्था करने वाले थे।
समय समय पर विभिन्न राज्यो की विधानपालिकाओं द्वारा भी कई स्थानीय संशोधन किये गये, जिनका मुख्य उद्देश्य न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक करना था, जैसा कि संविधान के अध्याय 4 में 'राज्य के नीति निदेशक सिद्धान्तों' के अंतर्गत उपबन्धित किया गया है। लेकिन इन समस्त संशोधनों के बाद भी 1898 की दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्राविधान व्यवहारिक रूप से अपरिवर्तनीय ही रहे। सन 1955 में प्रथम विधि आयोग की स्थापना तक इनमें महत्वपूर्ण परिवर्तन करने के कोई प्रयास नही किये गये।
प्रथम विधि आयोग की स्थापना:-
सन 1955 में प्रथम विधि आयोग की स्थापना की गई और उसे सिविल एवं आपराधिक विधि के न्याय-प्रशासन में सुधार के सम्बंध में रिपोर्ट प्रस्तुत करने का कार्य सौंपा गया। सन 1958 में आयोग ने दीवानी व आपराधिक(Civil and Criminal) न्याय-प्रशासन में सुधार के सम्बंध में अपनी 14वीं रिपोर्ट प्रस्तुत की। यद्यपि इसमें दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्राविधानों में संशोधन करने के लिये अनेक सुझाव दिये गये थे, लेकिन वे पूर्ण नही थे, अतः एक बार आयोग ने सम्पूर्ण दण्ड प्रक्रिया संहिता की परीक्षा एवं उसके पुनरीक्षण की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर उसे सितंबर 1969 में प्रस्तुत किया। आयोग ने जो ये रिपोर्ट प्रस्तुत की उस रिपोर्ट पर शासन द्वारा सतर्कता से विचार किया गया और दिनांक-12 दिसम्बर 1973 को लोकसभा ने इसे दण्ड प्रक्रिया संहिता में 125वें संशोधन के रूप में पारित किया। राज्य सभा द्वारा इसे पहले ही दिनांक-18 सितम्बर 1973 को अपनी स्वीकृति प्रदान की जा चुकी थी। अंततः 24 जनवरी 1974 को महामहिम राष्ट्रपति महोदय के हस्ताक्षर होकर इसने वर्तमान दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (अधिनियम संख्या 2 सन 1974) का रूप धारण कर लिया था। महामहिम राष्ट्रपति महोदय के हस्ताक्षर के उपरान्त दिनांक-1 अप्रैल 1974 को इसे लागू कर दिया गया था। भारत में आपराधिक कानून के क्रियान्यवन के लिये मुख्य कानून है।
नई दण्ड प्रक्रिया संहिता के मुख्य उद्देश्य:-
नई दण्ड प्रक्रिया संहिता का निर्माण जिन उद्देश्यों को लेकर किया गया था, उनमें से प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित है-
(a) अभियुक्त व्यक्ति के मामले का विचारण नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों (Principles of natural justice) के अनुसार किया जाना चाहिये।
(b) अन्वेषण (Investigation) एवं विचरण (Trial) में बिलम्ब को टालने के लिये यथासम्भव प्रयास किया जाना चाहिये।
(c) प्रक्रिया की पेचीन्दगी को दूर कर उसे सरल बनाया जाना चाहिये ताकि समाज का निर्धन वर्ग न्याय प्राप्त करने के लिये आश्वस्त हो सके।
(d) न्यायपालिका एवं कार्यपालिका के कार्यों को पृथक करना, जिससे न्यायिक मजिस्ट्रेट व कार्यपालक मजिस्ट्रेट के कार्यो का स्पष्ट विभाजन हो सके।
इस प्रकार नई संहिता का मुख्य उद्देश्य न्यायिक कार्यवाहियों में नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना, बिलम्ब को टालना एवं प्रक्रिया को सरल बनाना रहा है।।
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Tags:-CrPC, Procedure, Law Commission, 14rth report of law commission, new Criminal Procedure Code 1973, karimAhmad
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