Skip to main content

धारा 144 CrPC क्या होती ? धारा 144 को कब और क्यों लगातें हैं??



दण्ड प्रक्रिया संहिता का अध्याय 10 का शीर्षक है, लोक व्यवस्था और प्रशान्ति बनाये रखना। इस शीर्षक की शुरुआत धारा 129crpc से होती है और धारा 148 तक चलता है।। अध्याय 10 के इस शीर्षक को निम्नलिखित उपशीर्षकों में विभाजित किया गया है:-
A- विधि विरुद्ध जमाव (Unlawful assemblies)
B- लोक न्यूसेन्स।        (Public nuisances)
C- न्यूसेन्स या आशंकित खतरे के अर्जेन्ट मामले (Urgent cases of nuisance or apprehended danger)
D- यथावर सम्पति के बारे में विवाद (Disputes as to immovable property)
    इस लेख में उपशीर्षक Cन्यूसेन्स या आशंकित खतरे के अर्जेन्ट मामले (Urgent cases of nuisance or apprehended danger) के बारे में ही बात करेंगे। इस शीर्षक में दो महत्वपूर्ण धाराएँ दी हुई है धारा 144 और धारा 144A crpc. इस लेख में सिर्फ 144 crpc के प्राविधानों पर ही चर्चा करतें है:-
  धारा 144 crpc एक बहुचर्चित धारा है और शासन प्रशासन द्वारा सबसे ज़्यादा इस्तेमाल की जाती है,, तो देखते है कि यह धारा क्या है??
क्या है धारा 144 CrPC..
सबसे पहले कानूनी प्राविधानों ओर एक नज़र डालते है..

144.crpc..

Power to issue order in urgent cases of nuisance of apprehendeddanger.

(1) In cases where, in the opinion of a District Magistrate, a Sub-divisional Magistrate or any other Executive
Magistrate specially empowered by the State Government in this behalf, there is sufficient ground for proceeding under this section and immediate prevention or speedy remedy is desirable, such Magistrate
may, by a written order stating the material facts of the case and served in the manner provided by section 134, direct any person to abstain from a certain act or to take certain order with respect to certain property in his possession or under his management, if such Magistrate considers that such direction is likely to prevent, or tends to prevent, obstruction, annoyance or injury to any person lawfully employed, or danger to human life, health or safety, or a disturbance of the public tranquility, or a riot, of an affray.
 (2)An order under this section may, in cases of emergency or in cases where the circumstances do not admit of the serving in due time of a notice upon the person against whom the order is directed, be passed ex parte.
 (3)An order under this section may be directed to a particular individual, or to persons residing in a particular place or area, or to the public generally when frequenting or visiting a particular place or area.
 (4)No order under this section shall remain in force for more than two months from the making thereof:

 Provided that, if the State Government considers it necessary so to do for preventing danger to human life, health or safety or for
preventing a riot or any affray, it may, by notification, direct that an order made by a Magistrate under this section shall remain in force for such further period not exceeding six months from the date on which the order made by the Magistrate would have, but for such order, expired, as it may specify in the said notification.

 (5)Any Magistrate may, either on his own motion or on the application of any person aggrieved, rescind or alter any order made
under this section, by himself or any Magistrate subordinate to him or by his predecessor-in-office.
 (6)The State Government may, either on its own motion or on the application of any person aggrieved, rescind or alter any order made by it under the proviso to sub-section.
(7)Where an application under sub-section (5) or sub-section (6) is received, the Magistrate, or the State Government, as the case may be, shall afford to the applicant an early opportunity of appearing
before him or it, either in person or by pleader and showing cause against the order ; and if the Magistrate or the State Government, as the case may be, rejects the application wholly or in part, he or it
shall record in writing the reasons for so doing.

      धारा 144crpc में दिये गए प्राविधान से यह स्पष्ट है यह धारा किसी भी क्षेत्र में कार्यपालक मजिस्ट्रेट या जिलाधिकारी द्वारा क्षेत्र में अशान्ति, हिंसा, दंगा, या बल्वा होने की आशंका पर लगाई जाती है,  यदि किसी क्षेत्र में कोई ऐसी घटना घट जाती है जिससे मानव जीवन या स्वास्थ्य को संकट पैदा हो जाता है तो भी इस धारा को लगा दिया जाता है । इस धारा के लगने के बाद उस क्षेत्र में 4 या 4 से अधिक व्यक्ति एक जगह पर एकत्रित नही हो सकते।
धारा 144crpc कितने दिनों के लिये लगाई जा सकती है:-
  उपधारा 4 के अनुसार धारा 144 एक बार मे आदेश दिये जाने की तिथि से 2 माह से ज़्यादा समय के लिए नही लगाई जा सकती, परन्तु राज्य सरकार यदि यह समझती है कि अभी हालात ठीक नही है दंगा वल्बा रोकने के लिये इसे आगे बढ़ाना ज़रूरी है तो एक अधिसूचना के माध्यम से आदेश की तिथि से 6 माह के लिए बढ़ा सकती है। यदि राज्य सरकार 144 के आदेश को आगे नही बढ़ाती है तो 2 माह बाद मजिस्ट्रेट का आदेश स्वतः समाप्त हो जायेगा।
 धारा 144 का उल्लंघन करने पर सज़ा क्या होती है?

जब कोई व्यक्ति धारा 144 का उल्लंघन करता है तो उसके विरुद्ध दंगा, वल्बा का मुकदमा दर्ज़ किया जाता है। बल्वा धारा 147 IPC के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध होता है, जिसमे 2 वर्ष की सज़ा का प्राविधान है परन्तु यदि घातक हथियारों से सज्जित होकर बल्वा किया जा रहा है तो धारा 148IPC के अन्तर्गत अधिकतम 3 वर्ष की सज़ा और जुर्माने से दण्डित किये जाने का प्राविधान दिया गया है।


धारा 144 कब और कौन हटा सकता है?

 धारा 144 को उपधारा 5 में दिये गये प्राविधानों के अनुसार कोई भी मजिस्ट्रेट स्वतः या किसी व्यथित व्यक्ति के आवेदन पर धारा 144 के आदेश को विखण्डित कर सकता है या परिवर्तित कर सकता है। ठीक इसी तरह राज्य सरकार भी स्थिति सामान्य होने पर स्वतः या किसी व्यथित व्यक्ति के आवेदन ओर ऐसे आदेश को विखण्डित या परिवर्तित कर सकती है।।
   यह लेख आपको कैसा लगा कॉमेंट्स करने अपनी राय अवश्य दे:-
Tag-sec144crpc, magistrate, state government, Roits, Unlawful assembly, धारा 144,

अन्य कानूनी जानकारियों के लिये यूट्यूब चैनेल के सदस्य बने..👇

Comments

Popular posts from this blog

सामान्य उद्देश्य का क्या अर्थ होता है ? ( Meaning of Common Object )

इससे पहले लेख में सामान्य आशय के सम्बंध में धारा 34 भारतीय दण्ड संहिता में दिये गये प्राविधानों के बारे में चर्चा की गई थी, यह भी बताया गया था संयुक्त उत्त्तरदायित्व का सिद्धांत किसे कहते है, परन्तु सामान्य उद्देश्य को जाने बगैर संयुक्त उत्त्तरदायित्व के सिद्धांत की बात पूरी Highlight Ad Code नही होती। .  इस लेख में सामान्य उद्देश्य के बारे में ही जानते है। धारा 149 भारतीय दण्ड संहिता में सामान्य उद्देश्य के बारे में बताया गया है। धारा 149 विधि विरुद्ध जमाव के प्रत्येक सदस्य पर प्रतिनिहित दायित्व अधिरोपित करती है यदि वे स जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसारित करने में कोई अपराध करते हैं या वे सभी सभी विधि विरुद्ध जमाव के सदस्य यह जानते है कि उनके सामान्य उद्देश्य को अग्रसारित करने के लिये अपराध किया जाएगा। सबसे पहले धारा 149 भारतीय दण्ड संहिता में दिये गये प्राविधान पर एक नज़र डाल लेते है- Sectuon 149 The Indian Penal Code, 1860 Every member of unlawful assembly guilty of offence committed in prosecution of common object. If an offence is committed by any member...

ससुराल में पत्नी के कानूनी अधिकार (Legal right of wife in husband's house )

भारत का कानून शादीशुदा महिलाओं को ससुराल में कई तरह के विधिक अधिकार देता है, परन्तु महिलाओं को अपने कानूनी अधिकारों की जानकारी न होने के कारण महिलायें अत्याचार सहने पर मजबूर होती है। आये दिन अखबारों या सूचना के अन्य साधनों के माध्यम से यह खबरें मिलती रहती है कि दहेज़ की मांग को लेकर महिलाओं की हत्या तक कर दी जाती है या फिर महिला को शारीरिक और मानसिक रूप से इतना ज्यादा प्रताड़ित किया जाता है कि वह मजबूर होकर आत्म हत्या कर लेती है। ससुराल में महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा की घटनायें भी आम हो गयी है, आंकड़े यह भी बताते है कि लॉकडाउन के दौरान घरों के अंदर घरेलू हिंसा की घटनाओं में बढोत्तरी हुई है। इस लेख में शादीशुदा महिलाओं को भारत के कानून में कौन-कौन से महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार दिये गये है, उन्ही अधिकारों के बारे में चर्चा करते हैं।       भारत मे महिलाओं को जो कानूनी अधिकार दिये गये है उन अधिकारों को निम्नलिखित रूप से विभाजित किया जा सकता है- 1- गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार; 2- भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार; 3- स्त्रीधन को प्राप्त करने का अधिकार; 4- पति के साथ समर...

PM Cares fund is not a Public Authority under RTI..says PMO. PM Cares फण्ड पर RTI क्यों नही लागू होता?

देश मे जैसे ही कोविड-19 को महामारी घोषित किया गया कि वैसे ही माननीय प्रधानमंत्री जी श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने PM Cares  नाम के एक कोष की स्थापना की और पूरे देश को यह संदेश दिया कि यह राहत कोष कोरोना महामारी से लड़ने के लिए है। माननीय मोदी जी ने देशवासियों से इस राहत कोष में दान देने की याद से ज़्यादा अपील भी की।  PM Cares की स्थापना के बाद से ही इस कोष पर विपक्षी पार्टियों एवम अन्य बुद्धजीवियों के द्वारा सवाल उठाये जा रहे थे, श्रीमती सोनिया गाँधी जी के द्वारा भी इस राहत कोष (PM Cares fund ) को लेकर माननीय प्रधानमंत्री जी को एक चिठ्ठी लिखी गयी और यह आग्रह किया गया कि पीएम केयर्स कोष में अभी तक जमा की गई सम्पूर्ण धनराशि को पूर्व से ही स्थापित प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा राहत कोष में स्थानांतरित कर दी जाय। सोनिया जी की इस चिट्ठी के बाद भी राजनीति एक बार फिर से शुरू हो गयी थी और PM Cares fund को लेकर चर्चा फिर से तेज़ होना शुरू हो गयी थी। आपको बताते चले कि इसी दौरान हर्षकान्दूकरी के द्वार सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत PM Cares fund से सम्बन्ध में सम्पूर्ण...