भूतकाल में समाज मे अपराधियों के सुधार और पुनर्वास जैसी कोई सोंच नही थी, इसलिये उस समय का समाज अपराध की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए दण्ड की कठोरता में विश्वास करता था जिससे कि अपराधी स्थायी रूप से अपराध करने लायक न रह जाय। दण्ड की कठोरता का पुरातन सिद्धान्त वर्तमान में दण्ड के सुधारात्मक सिद्धान्त में परिवर्तित हो गया है।
दण्ड विधि के उदभव के सम्बंध में प्रसिद्ध विधिवेत्ता प्रो.सोरोकिन ने कहा है कि " दण्ड विधि का उदभव एकीकृत समाज की न्याय रूपी प्रक्रियाओं द्वारा हुआ है "।
भारतीय दण्ड विधि के इतिहास का वर्गीकरण :(Classification of history of Indian criminal laws.)
भारतीय आपराधिक दण्ड विधि के इतिहास को मुख्यरूप से तीन कालखण्डों में विभाजित किया जा सकता है-
1- हिन्दू आपराधिक विधि
2- मुस्लिम आपराधिक विधि
3- ब्रिटिशकालीन दण्ड विधि
A- हिन्दू आपराधिक दण्ड विधि (Hindu criminal law)
जैसा कि इतिहास बताता है कि भारत मे सर्वप्रथम आर्य लोग विचरित कृषक के रूप में आकर बस गये थे। दिन-प्रतिदिन के कार्यो को सुचारू रूप से चलाने के लिये समय के साथ उन्होंने अपने नियम कानून बनाये। प्राचीन भारत की प्रचलित संहिताओं में 'मनु संहिता ' पूर्ण संग्रह है, जिसमे उस समय की प्रचलित विधियों एवम रीति-रिवाजों का उल्लेख किया गया है
हिन्दू शासन काल मे न्याय-व्यवस्था या दण्ड व्यवस्था का पूर्ण उत्तरदायित्व राजा पर हुआ करता था। अपराधियों को दण्डित करने का कर्तव्य राजा का ही होता था। भारत की प्राचीन दण्ड व्यवस्था में मनुष्य में आपराधिक जीवन पर विशेष बल दिया जाता था। उस समय अपराध को पाप समझा जाता था। दंडनीति के अन्तर्गत दण्ड शास्त्र को सामाजिक सुरक्षा का साधन माना जाता था, जिससे स्पष्ट होता है कि दण्ड स्वयं लक्ष्य न होकर साधन मात्र था, जिसका उद्देश्य समाज मे शान्ति बनाये रखना था।
प्राचीन भारत की हिन्दू दण्ड व्यवस्था में निम्नलिखित चार प्रकार के दण्ड दिये जाने का प्राविधान हुआ करता था-
1- वाक-दण्ड, 2- चेतावनी, 3- अर्थ दण्ड, 4- कारावास तथा मृत्यु दण्ड
जब कोई व्यक्ति प्रथम बार अपराध करता था तो उसे वाक दण्ड दिया जाता था। हत्या जैसे गम्भीर अपराध के लिये मृत्यु दण्ड का प्राविधान था। प्राचीन हिन्दू दण्ड शास्त्रों में जारता सम्बन्धी अपराधो के लिये विशेष उपबन्ध दिये गए हैं। किसी स्त्री से आलिंगन करना, बुरी नियत से एकान्त में जाना जारता के अपराध के स्वरूप माने जाते थे जिनके लिये कठोर दण्ड दिया जाता था। बलात्कार (Rape ) के अपराध के लिये दोषी व्यक्ति का गुप्तांग काट दिया जाता था और उसकी सम्पत्ति जब्त कर ली जाती थी। अपराधियों के दोषी अथवा निर्दोष होने के लिये अग्नि परीक्षा एवम उबलते पानी के प्रयोग जैसी व्यवस्थायें प्रचलित थी। हिन्दू विधि के सम्बंध में एक बात विशेषरूप से उल्लेखनीय है कि "इसमें ब्राम्हणों एवं विशिष्ठ वर्गों तथा स्त्रियों के लिये अपेक्षाकृत कम दण्ड की व्यवस्था थी"।
B- मुस्लिम आपराधिक विधि (Muslim criminal law)
मुस्लिम विधि की शुरुआत भारत मे मुग़लों द्वरा अधिकार करने के बाद हई थी। मुस्लिम विधि क़ुरान पर आधारित थी तथा उसे दैवीय उत्पत्ति माना जाता था, इस्लाम के विकास के इतिहास से पता चलता है कि चूंकि कुरानिक विधि से सम्पूर्ण आवश्यकता की पूर्ति सम्भव नही हो पा रही थी, इसलिये कुछ अन्तर्नियमो जिन्हें सुन्ना कहा जाता है को भी विधि में शामिल कर लिया गया था।
मुस्लिम विधि के सिद्धांत प्राकृतिक न्याय एवम सामान्य विवेक के अनुरूप नही थे तथा यह विधि अत्यंत कठोर एवम संकुचित थी। छोटे-छोटे अपराधों के लिये भी कठोर दण्ड के प्राविधान थे। यह पूर्ववर्ती हिन्दू आपराधिक विधि से भी ज़्यादा कठोर व अमानवीय थी।
मुस्लिम दण्ड विधि अलग अलग अपराधों के लिये दिये जाने वाले दण्ड को मुख्यतः चार भागों में विभाजित करती है-
1-किसा, 2- दिया 3- हद्द, 4- ताजीर
1-किसा :- किसा का अर्थ है- अधिकार अर्थात बदला। हत्या जैसे गंभीर अपराधों के लिये किसा के तहत दण्ड दिया जाता था। दण्ड के इस प्रकार में पीड़ित पक्ष को यह अधिकार होता था कि अपराधी ने जिस प्रकार का अपराध उसके साथ किया है वह भी अपराधी के साथ उसी प्रकार का बदला ले सकता है, जैसे प्राण के बदले प्राण अंग-भंग के बदले अंग-भंग।
2-दिया :- दिया का अर्थ है- खून का मूल्य। अनजाने में घायल करने के मामले में पीड़ित पक्ष को एक तय मात्रा में खून का मूल्य दिया जाता था। ऐसे मामलों में जहाँ दण्ड नियत होता था, यदि पीड़ित पक्ष चाहे तो उससे खून की कीमत लेकर उसे दिया में बदला जा सकता था।
3- हद्द :- हद्द का अर्थ है- सीमा (Limit)। दण्ड के इस प्रकार में समाज विरोधी एवं धर्म विरोधी अपराध शामिल होते थे, इन अपराधों के लिये दण्ड की प्रकृति मात्रा तथा प्रकार विधि द्वारा निश्चित होते थे। इसके अधीन जो दण्ड होते थे वो बदले नही जा सकते थे, न ही उन्हें घटाया बढ़ाया जा सकता था। ज़िना अर्थात बलात्कार(Rape) के अपराध के लिये जो दण्ड दिया जाता था, वो हद्द के अंतर्गत ही दिया जाता था जिसमे पत्थर या कोड़े मार-मार के अपराधी को मार डाला जाता था। किसी विवाहिता पर व्यभिचार का झूठा आरोप लगाने पर अस्सी बैंत मारने का दण्ड दिया जाता था।
4- ताजीर :- ताजीर का अर्थ है- विवेकाधीन। इस प्रकार का दण्ड हमेशा न्यायधीश के विवेक पर निर्भर करता था । जिसमे कारावास, देश निकाला, भर्त्सना एवं कान ऐंठना जैसे अपमानजनक व्यवहार शामिल थे।
मुस्लिम अपराध विधि ज़्यादा कठोर, अमानवीय और बर्बर होने के कारण जनसाधारण में ज़्यादा लोकप्रिय नही हो पाई थी।।
C- ब्रिटिशकालीन दण्ड विधि (British Imdian criminal law)
जैसा कि हम पूर्व में देख चुके हैं कि मुगलकालीन मुस्लिम आपराधिक विधि बहुत ही अमानवीय व कठोर थी, इस विधि में कई सिद्धान्त ऐसे थे कि अंग्रेजों के प्राकृतिक न्याय, सदविवेक तथा अच्छी सरकार सम्बन्धी विचारों के अनुरूप नही थे। अतः अंग्रेजो में इसमें परिवर्तन करके एक अलग दण्ड विधि की स्थापना की।
ब्रिटिश शासन के काल मे अनेक चार्टर एवम अधिनियम पारित कर मुग़ल काल से चली आ रही मुस्लिम दण्ड विधि में मत्वपूर्ण परिवर्तन किये गये थे। आपराधिक न्याय प्रशासन के क्षेत्र में वारेन हैस्टिंग्स, लॉर्ड कॉर्नवालिस तथा बिलियम बैंटिंक आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ब्रिटिश काल मे आपराधिक दण्ड विधि में निम्नलिखित प्रमुख सुधार किये गये थे-
1- हत्या एवम सदोष मानव वध के अपराध का निर्धारण औज़ार से नही बल्कि अपराधी के आशय से किया जाने लगा।
2- अपराध को एक सामाजिक अपकार मानते हुये सरकार द्वारा उसका अभियोजन चलाये जाने की व्यवस्था की गयी।
3- जारता (Adultary) बलात्कार (Rape) के अपराधों में प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही की आवश्यकता समाप्त कर दी गयी। इन अपराधों में परिस्थितिजन्य साक्ष्य व संस्वीकृति के आधार पर दण्ड की व्यवस्था की गई।
4- धर्म के आधार पर भेदभाव को दूर कर दिया गया था, किसी भी धर्म हिन्दू या मुस्लिम गवाही दे सकता था।
धीरे धीरे आपराधिक दण्ड विधि में और भी संशोधन होते रहे, और अन्ततः भारतीय दण्ड संहिता का प्रारूप तैयार हुआ जिसको लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता वाले प्रथम विधि आयोग द्वारा तैयार किया गया और सन 1837 में भारत मे महाराज्यपाल की परिषद के समक्ष प्रस्तुत किया गया। महाराज्यपाल ने दिनांक- 7 अक्टूबर 1860 को इस पर अपनी सहमति प्रदान कर दी थी। भारतीय दण्ड संहिता में पूर्व की दण्ड विधियों परिष्कृत रूप में प्रस्तुत किया गया है।
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