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केंद्र व राज्य सरकार लॉक-डाउन में ज़रूरतमंद अधिवक्ताओं को आर्थिक मदद की घोषणा करें ।


अधिवक्ता न्यायप्रशासन का एक अभिन्न अंग है, अधिवक्ता समाज सबसे कम संसाधनों में हर मौसम में हर तरह की तकलीफों  को बर्दाश्त करते हुऐ आम लोंगो समाज व व्यवस्था द्वारा सताये गये लोंगो को न्याय दिलाने के साथ साथ अपनी जीविका चलाता है। अधिवक्ता समाज अपने क्लाइन्ट के लिये पूरी व्यवस्था से लड़ने का जज़्बा रखता है।। एक समय हुआ करता था, जब ये पेशा जीविका चलाने से ज़्यादा नाम और शोहरत के लिये होता था बड़े-बड़े घरों व राय बहादुर, खान बहादुर परिवारों के लोग ही ज़्यादातर इस पेशे में हुआ करते थे।। परन्तु आज स्थितियां बदल गयी है आज मध्यम वर्ग के साथ साथ किसान का बेटा, मजदूर का बेटा, आम मेहनतकश का बेटा अर्थात हर आय वर्ग के लोग इस पेशे में आ रहे है, और लोगो को न्याय दिलाने का प्रयास करते हुए अपनी जीविका चला रहे हैं।।
  पिछले 50 दिनों से लॉक डाउन के चलते पूरे देश मे जिला न्यायालय भी बन्द है जिससे अधिवक्ताओं की आय का स्रोत भी पूरी तरह बन्द है, ऐसे अधिवक्ता जो अर्थिकरूप से कमजोर परिवारों और पिछड़े वर्ग से है, ऐसे अधिवक्ता जिन्होंने अपनी वकालत कुछ एक सालों पहले ही शुरू की है, ऐसे अधिवक्ता जिनके पास सीमित संसाधन है उनके सामने भी रोजी-रोटी का संकट आ सकता है। उन सभी के लिये केंद्र व राज्य की सरकारों द्वारा किसी तरह की आर्थिक मदद के लिए किसी पैकेज की घोषणा क्यों नही की गई ? जब अधिवक्ता समाज न्याय प्रशासन का एक अभिन्न अंग है न्यायिक व्यवस्था बिना अधिवक्ता के संचालित नही हो सकती तो व्यवस्था की ज़िम्मेदारी नही है कि अधिवक्ता समाज के लिये भी ज़रूरतमंद लोंगो के लिये आर्थिक मदद की घोषणा करे। वकालत के पेशे से जुड़े हुए लोंगो के लिए सरकार द्वारा किसी भी तरह की आर्थिक मदद का एलान न करना पूरे अधिवक्ता समाज के  प्रति केंद्र सरकार व राज्य सरकारों की असंवेदनशीलता को दर्शाता है।।
  स्थानीय अधिवक्ता संघ अपने-अपने स्तर से ज़रूरतमंद अधिवक्ताओं की मदद अवश्य कर रहें है परन्तु वह नाकाफ़ी है।। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस सम्बंध में स्टेट बार कौंसिल से कहा परन्तु राज्य बार कौंसिल भी कोई ठोस कदम उठाती नही दिख रही, यहां तक कि अधिवक्ताओं को आर्थिक मदद देने का मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा, परन्तु सर्वोच्च न्यायालय ने तो विचार करने से ही मना कर दिया।। ऐसा प्रतीत होता है जैसे ये पूरी की पूरी व्यवस्था अधिवक्ता समाज को खत्म कर देना चाहती है या फिर इस व्यवस्था में अधिवक्ता समाज के प्रति सहानभूति नही रह गयी।।
  सबसे बड़ा प्रश्न अभी भी बना हुआ है कि न्याय व्यवस्था का अभिन्न अंग होने के बावजूद भी केंद्र व राज्य सरकार के द्वारा तालाबन्दी के 50 दिनों के बाद भी अधिवक्ताओं लो आर्थिक मदद देने के बारे में क्यों नही सोंचा जा रहा है?? इसी के साथ साथ अधिवक्ताओं के साथ एक और बहुत बड़ा तबका है जो काम करता है वह है मुंशी  कोर्ट कैम्पस में टाइपिस्ट, स्टाम्प वेन्डर आदि । इन सबके बारे में भी शायद सरकारों के पास सोंचने को वक़्त नही है।।
  अधिवक्ता कल्याण निधि न्यास समिति उत्त्तर प्रदेश में बनी हुई है जिसमें अधिवक्ताओं के द्वरा सालाना धनराशि जमा की जाती है इसी के साथ साथ प्रत्येक वकालतनामा में 10/- का अधिवक्ता कल्याण टिकट लगता है जिसका पैसा अधिवक्ता कल्याण न्यासी समिति को जाता है, वर्तमान में अधिवक्ता न्यासी समिति के पास तकरीबन 250 करोड़ की धनराशि है, परन्तु ऐसी विषमपरिस्थितियों  में न्यासी समिति भी अधिवक्ताओं की आर्थिक मदद नही कर रही है।। बातें बहुत हो रही हैं परन्तु ज़मीन पर ठोस कार्यवाही नही हो पा रही है, आश्चर्य की बात यह भी है कि सरकारों के अलावा अधिवक्ताओं की इस समस्या के बारे में बात करने के लिये देश की मुख्यधारा की मीडिया के पास भी समय नही हैं।। यह सारी बातें यह स्पष्ट करती है कि अधिवक्ताओं की अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी होगी। मेरी समस्त ज़िला बार संघो के पदाधिकारियों, जिलों में कार्य कर रहे विभिन्न तरह के स्वतंत्र अधिवक्ता संघठनो से यह अपील है कि एक कार्य योजना बनाएं और एकजुटता के साथ ज़रूरतमंद अधिवक्ताओं के लिये  आर्थिक मदद हेतु बड़े स्तर पर सरकारों से मांग करें।।
अधिवक्ताओं को आर्थिक मदद हेतु कुछ प्रमुख मांगे व सुझाव- 
   मैं इस लेख के माध्यम से केंद्र व राज्य सरकारों से अधिवक्ताओं को आर्थिक मदद के लिये निम्मलिखित मांगे करता हूँ:-
1-कम से कम 10 वर्षो तक के अधिवक्ताओं को शामिल किया जाय।
2-जो अधिवक्ता सक्रिय रूप में वकालत कर रहे हैं उन्हें ही शामिल किया जाय ..
3- कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि और मजदूर *वर्ग से आने वाले अधिवक्ताओं को प्राथमिकता दी जाय।।
4-अधिवक्ताओं के मुंशियों को भी शामिल किया जाय।।
5-स्थानीय बार संघो के सहयोग से आर्थिक मदद सीधे बैंक खातों में स्थानांतरित की जाय।।
6-स्थानीय बार संघो को ही मदद पाने वाले अधिवक्ताओं और मुंशियों की सूची बनाने की ज़िम्मेदारी दी जाय।।
7-इस कार्य मे कचहरी कैम्पस में स्वतंत्र रूप से कार्य कर रहे अधिवक्ता संघठनो जैसे AILU आदि का सहयोग भी लिया जाय।।
8-बार कौंसिल के अलावा राज्य सरकार और भी अधिवक्ताओं की आर्थिक मदद करने हेतु धन आवंटित करने का दवाब बनाया जाय।।
9-आर्थिक मदद को अतिशीघ्र अमलीजामा पहनाने हेतु सक्रिय कदम उठाए जाय।।
10- लॉक डाउन को सफल बनाने हेतु कानूनी मदद के लिए स्थानीय स्तर पर प्रशासन को अधिवक्ताओं को साथ लिया जाय।।।

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