किसी भी अपराध को मूर्त स्वरूप देने के लिये या अपराध करने से पूर्व अपराधी विभिन्न स्तरों से होकर गुजरता है। यदि कोई अपराध अचानक या अपरिहार्य दुर्घटना (Inevitable Accident) के रूप में घटित होता है तो उसको अपराध के विभिन्न स्तरों से होकर नही गुजरना पड़ता है, इसलिए अपरिहार्य दुर्घटना को एक सफल बचाव या अपवाद माना जाता है। इस प्रकार साशय या जानबूझकर किये गये गये अपराध को करने के लिये एक अपराधी सामान्यतया निम्न स्तरों से होकर गुजरता है:-
1- आशय (Intention)
2- तैयारी (Preparation)
3- प्रयास या प्रयत्न (Attempt)
4- अपराध का निष्पादन (Execution)
इस तरह से एक अपराधी उक्त स्तरों से गुजरता हुआ किसी अपराध को अंजाम देता है। अब उक्त सभी स्तरों के बारे में एक एक करके विस्तारपूर्वक जानते हैं।
1-आशय (Intention)
प्रत्येक अपराध के पीछे कोई न कोई आशय अवश्य होता है। बिना कारण के कोई कार्य नही होता। कारण आशय को जन्म देता है। यदि कोई कार्य आशय के अभाव में घटित होता है तो उसे दुर्घटना (Accident) माना जाता है तथा दुर्घटना या दुर्भाग्यवश घटित घटना के फलस्वरूप होने वाली क्षति दायित्व के विरुद्ध एक सफल अपवाद या बचाव है तथा क्षम्य होता है। आपराधिक विधि के आशय से तात्यपर्य दुराशय (Mens Rea) से है। मेंस रिया के बारे में विस्तार पूर्वक किसी अन्य लेख में बात की जाएगी।। आशय की परिभाषा देना कठिन है परन्तु यह कहा जा सकता है कि मानव के मन मे किसी कार्य को करने की भावना होना ही आशय है। आशय किसी कार्य को करने की प्रथम अवस्था है जिसके पीछे कोई न कोई कारण (Cause) अवश्य होता है, जैसे वैमनस्य, किसी से अपमानित होना या मुकदमेबाजी में पराजय जैसे कई कारण हो सकते है जो आशय को जन्म देतें हैं।
परन्तु यह याद रहे कि मात्र आशय का होना ही किसी अपराध को किये जाने का निश्यात्मक सबूत नही होता और आशय का महत्व घटना के घट जाने के पश्चात ही होता है।
2- तैयारी (Preparation)
किसी भी अपराध को कारित करने के लिये तैयारी दूसरी अवस्था होती है। जब किसी व्यक्ति के मन मे किसी कार्य या अपराध को करने का आशय जन्म लेता है या इरादा बनता है तो उस आशय को पूरा करने की तैयारी करने हेतु वह प्रेरित होता है, परन्तु यह याद रहे किसी भी अपराध की तैयारी अपने आप मे दण्डनीय (Punishable) नही है। तैयारी के बाद अपराधी अपराध करने का प्रयास करता है। किसी अपराध को कारित करने की तैयारी अपराध करने हेतु साधन जुटाने को कहते है। कुछ अपराधों जैसे षडयंत्र या जालसाजी के अपराध को छोड़कर, तैयारी अपने आप मे दण्डनीय नही होती। अपराध को करने के लिये साधन जुटाने मात्र से अपराध का प्रारंभ होना नही कहते।
3- प्रयास (Attempt)
किसी भी अपराध को करने के लिये प्रयास अपराध करने की तीसरी अवस्था होती है। अपराध करने की तैयारी तथा प्रयास में मुख्य अन्तर यह है कि "तैयारी अपराध करने के लिये साधन जुटाने को कहते है जबकि प्रयास (Attempt) से अपराधी अपराध करने का प्रारम्भ कर चुका होता है। इससे पूर्व की दोनों अवस्थाएं आशय और तैयारी अपने आप मे दण्डनीय नही है क्योंकि उसके बाद भी अपराधी के पास पश्चाताप का अवसर रहता है, परन्तु अपराध का प्रयास स्वयं में एक दण्डनीय अपराध होता है।
अपराध करने की तैयारी(Preparation) की अवस्था के पश्चात प्रयास या प्रयत्न (Attempt) की अवस्था प्रारम्भ होती है। प्रयास या प्रयत्न अपराध करने की दिशा में प्रथम कदम होता है। भरतीय दण्ड संहिता में अपराध के प्रयास या प्रयत्न के बारे में भी धाराएँ दी हुई है।
4- अपराध का निष्पादन (Execution of Crime)
अपराध का निष्पादन या क्रियान्यवन आपराधिक कृत्य का अन्तिम चरण है। अपराध का निष्पादन वह अवस्था है जिसके बाद कुछ करना शेष नही रह जाता। अपराध घटित हो जाने के बाद जिस व्यक्ति के साथ अपराध किया गया है उसे जो भी क्षति हुई है या उपहति कारित हुई है उसके लिये पूरी तरह से अपराध करने वाला व्यक्ति ही जिम्मेदार होता है। अपराध पूर्ण हो जाने पर अपराधी दण्ड का भागी हो जाता है।
अपराध की तैयारी मात्र कब दण्डनीय होती है ? (When only preparation is punishable)
आशय तथा तैयारी सामान्यरूप से दण्डनीय नही है, परन्तु निम्न परिस्थितियों में मात्र तैयारी भी दण्डनीय होती है :
1- भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध की तैयारी करना ;
2-भारत सरकार के साथ शान्ति रखने वाले राष्ट्र में आतंक मचाने की तैयारी करना;
3- कूट सिक्के (Counterfeit coins)बनाने की तैयारी करना;
4- डकैती की तैयारी करना ;
5- आपराधिक षड्यंत्र या जालसाज़ी के अपराध की तैयारी करना ;
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Tag:- IPC, Crime, Intention, Preparation, Attempt, Mens Rea, Stages of crime, Punishment,
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