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Showing posts from May, 2020

सामान्य उद्देश्य का क्या अर्थ होता है ? ( Meaning of Common Object )

इससे पहले लेख में सामान्य आशय के सम्बंध में धारा 34 भारतीय दण्ड संहिता में दिये गये प्राविधानों के बारे में चर्चा की गई थी, यह भी बताया गया था संयुक्त उत्त्तरदायित्व का सिद्धांत किसे कहते है, परन्तु सामान्य उद्देश्य को जाने बगैर संयुक्त उत्त्तरदायित्व के सिद्धांत की बात पूरी Highlight Ad Code नही होती। .  इस लेख में सामान्य उद्देश्य के बारे में ही जानते है। धारा 149 भारतीय दण्ड संहिता में सामान्य उद्देश्य के बारे में बताया गया है। धारा 149 विधि विरुद्ध जमाव के प्रत्येक सदस्य पर प्रतिनिहित दायित्व अधिरोपित करती है यदि वे स जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसारित करने में कोई अपराध करते हैं या वे सभी सभी विधि विरुद्ध जमाव के सदस्य यह जानते है कि उनके सामान्य उद्देश्य को अग्रसारित करने के लिये अपराध किया जाएगा। सबसे पहले धारा 149 भारतीय दण्ड संहिता में दिये गये प्राविधान पर एक नज़र डाल लेते है- Sectuon 149 The Indian Penal Code, 1860 Every member of unlawful assembly guilty of offence committed in prosecution of common object. If an offence is committed by any member...

अपराधों में संयुक्त दायित्व का सिद्धांत (Principle of joint responsibility in Crimes ) सामान्य आशय (Common Intention)

वैसे तो किसी भी तो किसी भी आपराधिक कृत्य के लिए कोई भी व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से ही जिम्मेदार होता है, परन्तु जहां कहीं पर कोई अपराधिक कृत्य दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा ऐसी परिस्थितियों में किया जाता है जहां यह सुनिश्चित करना मुश्किल हो जाता है कि वास्तव में अपराध किस व्यक्ति के द्वारा किया गया है तब उन सभी व्यक्तियों को संयुक्तरूप से उस अपराध के लिये उत्तरदायी माना जाता है।     भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 से लेकर 38 तक तथा धारा 149 में उन सभी परिस्थितियों के बारे में प्राविधान दिये गये है जिनमे जिनमें संयुक्त आपराधिक उत्त्तरदायित्व को दण्डनीय बनाया गया है। इस लेख में धारा 34 भारतीय दण्ड संहिता में दिये गये सामान्य आशय से सम्बंधित प्राविधानों के बारे में ही चर्चा करेंगे, सामान्य उद्देश्य धारा 149 की चर्चा दूसरे लेख में करेंगे। Highlight Ad Code सर्वप्रथम भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 में दिये गये प्राविधान पर एक नज़र डालते हैं। Sec.34.IPC-Acts done by several persons in furtherance of common intention.— When a criminal act is done by several persons in furt...

ससुराल में पत्नी के कानूनी अधिकार (Legal right of wife in husband's house )

भारत का कानून शादीशुदा महिलाओं को ससुराल में कई तरह के विधिक अधिकार देता है, परन्तु महिलाओं को अपने कानूनी अधिकारों की जानकारी न होने के कारण महिलायें अत्याचार सहने पर मजबूर होती है। आये दिन अखबारों या सूचना के अन्य साधनों के माध्यम से यह खबरें मिलती रहती है कि दहेज़ की मांग को लेकर महिलाओं की हत्या तक कर दी जाती है या फिर महिला को शारीरिक और मानसिक रूप से इतना ज्यादा प्रताड़ित किया जाता है कि वह मजबूर होकर आत्म हत्या कर लेती है। ससुराल में महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा की घटनायें भी आम हो गयी है, आंकड़े यह भी बताते है कि लॉकडाउन के दौरान घरों के अंदर घरेलू हिंसा की घटनाओं में बढोत्तरी हुई है। इस लेख में शादीशुदा महिलाओं को भारत के कानून में कौन-कौन से महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार दिये गये है, उन्ही अधिकारों के बारे में चर्चा करते हैं।       भारत मे महिलाओं को जो कानूनी अधिकार दिये गये है उन अधिकारों को निम्नलिखित रूप से विभाजित किया जा सकता है- 1- गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार; 2- भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार; 3- स्त्रीधन को प्राप्त करने का अधिकार; 4- पति के साथ समर...

भारतीय दण्ड संहिता के निर्माण से पूर्व अपराध विधि का संक्षिप्त इतिहास।

 किसी भी समाज मे प्रचलित सभ्यता और संस्कृति का ज्ञान उस समाज की विधि व्यवस्था से होता है। मानव सभ्यता के साथ ही अपराध विधि का सूत्रपात हुआ था। जब से मानव ने प्रजनन की सहज प्रवृत्तियों की परितृप्ति हेतु स्त्रियों और पुरुषों के एक सम्मिलित समुदाय का स्वप्न देखा, और परिवार के रूप में एक संगठित समाज मे सामूहिक रूप से रहना प्रारम्भ किया; वैसे ही आपराधिक विधि की आवश्यकता का अनुभव किया जाने लगा था। प्रारम्भ में मनुष्य अपने प्रति किये गये अपकार का निर्णय स्वयं ही करता था और अपकार करने वाले को स्व-विवेकानुसार दण्ड देता था, जो कि सामान्यतः बहुत ही कठोर और बर्बर हुआ करता था।    भूतकाल में समाज मे अपराधियों के सुधार और पुनर्वास जैसी कोई सोंच नही थी, इसलिये उस समय का समाज अपराध की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए दण्ड की कठोरता में विश्वास करता था जिससे कि अपराधी स्थायी रूप से अपराध करने लायक न रह जाय। दण्ड की कठोरता का पुरातन सिद्धान्त वर्तमान में दण्ड के सुधारात्मक सिद्धान्त में परिवर्तित हो गया है।     दण्ड विधि के उदभव के सम्बंध में प्रसिद्ध विधिवेत्ता प्रो.सोरोकिन ने कह...

भारतीय दण्ड संहिता के आपराधिक प्राविधान किन व्यक्तियों पर लागू नही होते??

सामान्यतः भारत मे रह रहा कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह का आपराधिक कृत्य करता है तो उस पर भारतीय दण्ड संहिता में दिये गये आपराधिक धाराओं के तहत मुकदमा चलाया जाता है, परन्तु भारत में कुछ ऐसे विशिष्ट व्यक्ति भी है जिनके विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत कोई भी आपराधिक अभियोग पंजीकृत नही किया जा सकता। इस लेख में संक्षिप्त में उन्ही व्यक्तियों के बारे में जानते है कि वो कौन व्यक्ति है जिनको दण्ड न्यायालयों की अधिकारिता से परे रखा गया है, और दण्ड संहिता के उपबन्ध उन पर लागू नही होते। ऐसे व्यक्तियों के बारे निम्नलिखितरूप से बताया जा रहा है। 1- राष्ट्रपति तथा राज्यपाल- (President and Governor)   भारत का राष्ट्रपति तथा राज्यों के राज्यपालों को भारतीय दण्ड संहिता के प्राविधानों से बाहर रखा गया है। इन लोंगो के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत कोई भी अभियोग पंजीकृत नही किया जा सकता। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 361 में यह कहा गया है कि   "किसी भी न्यायालय में कोई भी आपराधिक प्रक्रिया न तो राष्ट्रपति के विरुद्ध और न ही किसी राज्यपाल के विरुद्ध उनकी पदावधि के दौरान न तो दाखिल की जा...

केंद्र व राज्य सरकार लॉक-डाउन में ज़रूरतमंद अधिवक्ताओं को आर्थिक मदद की घोषणा करें ।

अधिवक्ता न्यायप्रशासन का एक अभिन्न अंग है, अधिवक्ता समाज सबसे कम संसाधनों में हर मौसम में हर तरह की तकलीफों  को बर्दाश्त करते हुऐ आम लोंगो समाज व व्यवस्था द्वारा सताये गये लोंगो को न्याय दिलाने के साथ साथ अपनी जीविका चलाता है। अधिवक्ता समाज अपने क्लाइन्ट के लिये पूरी व्यवस्था से लड़ने का जज़्बा रखता है।। एक समय हुआ करता था, जब ये पेशा जीविका चलाने से ज़्यादा नाम और शोहरत के लिये होता था बड़े-बड़े घरों व राय बहादुर, खान बहादुर परिवारों के लोग ही ज़्यादातर इस पेशे में हुआ करते थे।। परन्तु आज स्थितियां बदल गयी है आज मध्यम वर्ग के साथ साथ किसान का बेटा, मजदूर का बेटा, आम मेहनतकश का बेटा अर्थात हर आय वर्ग के लोग इस पेशे में आ रहे है, और लोगो को न्याय दिलाने का प्रयास करते हुए अपनी जीविका चला रहे हैं।।   पिछले 50 दिनों से लॉक डाउन के चलते पूरे देश मे जिला न्यायालय भी बन्द है जिससे अधिवक्ताओं की आय का स्रोत भी पूरी तरह बन्द है, ऐसे अधिवक्ता जो अर्थिकरूप से कमजोर परिवारों और पिछड़े वर्ग से है, ऐसे अधिवक्ता जिन्होंने अपनी वकालत कुछ एक सालों पहले ही शुरू की है, ऐसे अधिवक्ता जिनके पास सी...

Mens Rea (दुराशय ) अपराध दण्ड संहिता का एक प्रमुख तत्व है।

न्यायमूर्ति कोक ने अपनी पुस्तक 'थर्ड इंस्टीट्यूट' सन्त अगस्ताइन के धर्मोपदेश का आधार लेते हुये एक सूत्र का प्रयोग किया है। यह सूत्र है -     "ACTUS NON FACIT REUM NISI MENS SIT REA" (ऐक्ट्स नॉन फेसिट रियम निसी मेन्स सिट रिया )  इसका अर्थ है कि दुराशय के बिना केवल कार्य किसी व्यक्ति को अपराधी नही बनाता। आज यह सूत्र अंग्रेजी आपराधिक विधि का अधार-स्तंभ बन गया है। यह सूत्र उतना ही प्राचीन है जितनी अंग्रेजी दाण्डिक विधि ।     उपरोक्त सूत्र का विश्लेषण करने से यह सुनिश्चित होता है कि किसी कृत्य को अपराध मानने के लिये दो आवश्यक तत्वों का होना आवश्यक है-- 1-   शारीरिक या भौतिक कृत्य  (Actus Reus ) 2-    मानसिक तत्व या दुराशय   (Mens Rea  )    उपरोक्त दोनों तत्वों को विस्तार से समझते हैं :- (1) शारीरिक या भौतिक कृत्य (Actus Reus ) शारीरिक या भौतिक कृत्य से तात्पर्य  सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनो तरह से कार्यो से है। सकारात्मक कृत्य (Positive action)  से तात्पर्य किसी मनुष्य की सकारात्मक गतिविधि से...

अपराध किये जाने के विभिन्न स्तर? (Different stages in commission of a crime)

किसी भी अपराध को मूर्त स्वरूप देने के लिये या अपराध करने से पूर्व अपराधी विभिन्न स्तरों से होकर गुजरता है। यदि कोई अपराध अचानक या अपरिहार्य दुर्घटना (Inevitable Accident) के रूप में घटित होता है तो उसको अपराध के विभिन्न स्तरों से होकर नही गुजरना पड़ता है, इसलिए अपरिहार्य दुर्घटना को एक सफल बचाव या अपवाद माना जाता है। इस प्रकार साशय या जानबूझकर किये गये गये अपराध को करने के लिये एक अपराधी सामान्यतया निम्न स्तरों से होकर गुजरता है:- 1- आशय (Intention) 2- तैयारी  (Preparation) 3- प्रयास या प्रयत्न (Attempt) 4- अपराध का निष्पादन (Execution)   इस तरह से एक अपराधी उक्त स्तरों से गुजरता हुआ किसी अपराध को अंजाम देता है। अब उक्त सभी स्तरों के बारे में एक एक करके विस्तारपूर्वक जानते हैं। 1-आशय (Intention)    प्रत्येक अपराध के पीछे कोई न कोई आशय अवश्य होता है। बिना कारण के कोई कार्य नही होता। कारण आशय को जन्म देता है। यदि कोई कार्य आशय के अभाव में घटित होता है तो उसे दुर्घटना (Accident) माना जाता है तथा दुर्घटना या दुर्भाग्यवश घटित घटना के फलस्वरूप होने वाल...

दण्ड प्रक्रिया संहिता का इतिहास एवम विकास (History and development of Criminal Procedure Code)

दण्ड प्रक्रिया संहिता का इतिहास लगभग 122 वर्ष पुराना होने आया है। व्यवस्थित रूप से यह संहिता प्रथम बार सन 1898 में 'दण्ड प्रक्रिया संहिता'1898 के रूप में हमारे सामने आई थी। उस समय इसे जम्मू कश्मीर, नागालैंड एवं असम से जनजातीय क्षेत्रो को छोड़कर समस्त भारत पर लागू किया गया था। समय समय पर आवश्कयतानुसार दण्ड प्रक्रिया संहिता में संशोधन होते रहे। सबसे महत्वपूर्ण संशोधन सन 1923 व 1955 में हुये, ये संशोधन दण्ड प्रक्रिया संहिता को अत्यंत विस्तृत एवं प्रक्रिया को सरल बनाने तथा यथासम्भव शीघ्र विचारण की व्यवस्था करने वाले थे।    समय समय पर विभिन्न राज्यो की विधानपालिकाओं द्वारा भी कई स्थानीय संशोधन किये गये, जिनका मुख्य उद्देश्य न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक करना था, जैसा कि संविधान के अध्याय 4 में 'राज्य के नीति निदेशक सिद्धान्तों' के अंतर्गत उपबन्धित किया गया है। लेकिन इन समस्त संशोधनों के बाद भी 1898 की दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्राविधान व्यवहारिक रूप से अपरिवर्तनीय ही रहे। सन 1955 में प्रथम विधि आयोग की स्थापना तक इनमें महत्वपूर्ण परिवर्तन करने के कोई प्रयास नही कि...

साक्ष्य क्या होता है? साक्ष्य कितने प्रकार के होते हैं?? (What is Evidence? types of Evidence?)

साक्ष्य अर्थात एविडेंस (Evidence) लैटिन शब्द एविडेरा (Evidera) से लिया गया है; जिसका अर्थ होता है सत्यता को पता लगाना, निश्चित करना अथवा साबित करना। कुछ विधि शास्त्रियों ने साक्ष्य की निम्नलिखित रूप से परिभाषित किया है:- ब्लैकस्टोन के अनुसार "एविडेंस शब्द उसको घोषित करता है जिससे एक पक्ष या अन्य पक्ष के तथ्यों (Facts)  या विवद्दको की सत्यता प्रदर्शित, स्पष्ट अथवा निश्चित होती हो"।     डॉ. जॉनसन के अनुसार, "एविडेंस शब्द सुव्यक्त होने की उस स्थिति को संज्ञापित करता है जो कि साफ प्रकट अथवा विख्यात हो।"   भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 3 में साक्ष्य को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया गया है- 'साक्ष्य' शब्द से ओभिप्रेत है और उसके अंतर्गत आते हैं- 1- वे सभी कथन जिनके जाँच अधीन तथ्यों के विषयों के सम्बंध में न्यायालय अपने सामने साक्षियों द्वारा किये जाने की अनुज्ञा देता है या अपेक्षा करता है, ऐसे कथन मौखिक साक्ष्य कहलाते हैं। 2- न्यायालय के निरीक्षण के लिये पेश किये गये सभी दस्तावेजें ; ऐसे दस्तावेज़ दस्तावेज़ी साक्ष्य कहलाते हैं।   साक्ष्य के ...

भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 को पारित करने की पीछे की पृष्ठभूमि? (Background brief history of Indian Evidence Act 1872.)

        समस्त भारत की सम्पूर्ण न्याय प्रक्रिया  भारतीय साक्ष्य अधिनियम  1872 की बुनियाद पर टिकी हुई है।  साक्ष्य अधिनियम  आपराधिक, सिविल, राजस्व या किसी भी प्रकृति का वाद हो सभी प्रकार की विधियों में निर्णायक भूमिका निभाता है। इस लेख में जानते हैं कि भारत मे साक्ष्य अधिनियम के पारित होने से पूर्व की पृष्ठभूमि क्या थी। भारतीय साक्ष्य अधिनियम पारित होने की पृष्ठभूमि:-    भारत मे अंग्रेजो के शासनकाल में भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 से पूर्व इसके विषय पर कोई व्यवस्थित विधान नही था। प्रेसीडेंसी नगरों मुम्बई, कलकत्ता एवम मद्रास में रॉयल चार्टर के द्वारा स्थापित न्यायालय अंग्रेजी साक्ष्य नियम लागू करते थे। प्रेसीडेंसी शहरों के बाहर अर्थात मुफस्सिल में साक्ष्य के कोई निश्चित नियम नही थे। साक्ष्य विधि सम्बन्ध में अंग्रेजो के ज़माने में कई अधिनियम पारित किये गये थे, क्रमवार सभी अधिनियमों को निम्नलिखित रूप से दिया जा रहा है:- a- साक्ष्य अधिनियम 1835 (Act no. 10 of 1835) b- साक्ष्य अधिनियम 1855 (Act no. 2 of 1855 ) c- साक्ष्य अधिनियम 1855 (A...

परिवाद क्या होता है? न्यायालय में परिवाद कैसे दर्ज़ करते है ??

भारत मे अपराधिक मामलों को दो तरह से दर्ज़ करातें है, पहला किसी भी संज्ञेय अपराध की सूचना पुलिस थाने में देते हैं जहां पुलिस द्वारा धारा 154crpc के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज़ की जाती है, असंज्ञेय अपराध की सूचना जब थाने में दी जाती है तो पुलिस धारा 155crpc के तहत एनसीआर दर्ज़ करती है। इससे स्पष्ट है पहला तरीका तो ये है कि हम अपराधों की सूचना पुलिस में देतें है जहां पुलिस कानून के मुताबिक उसे FIR या एनसीआर के रूप में दर्ज़ करती है।। दूसरा तरीका ये है कि यदि हम अपराधिक मामले की सूचना पुलिस में नही करना चाहते तो सीधेन्यायालय(Court) में घटना का परिवाद दाखिल कर सकते है। परिवाद लिखित और मौखिक दोनो तरह से हो सकता है, परिवाद में घटना के सम्बंध में समस्त तथ्यों को कहा जाता है। परिवाद क्या है?? परिवाद को धारा 2(d)crpc में परिभाषित किया गया है, देखते है परिवाद की क्या परिभाषा दी गयी है:- धारा 2(d)crpc-        "complaint" means any allegation made orally or in writing to a Magistrate, with a view to his taking action under this Code, that some person, whether known or ...

धारा 144 CrPC क्या होती ? धारा 144 को कब और क्यों लगातें हैं??

दण्ड प्रक्रिया संहिता का अध्याय 10 का शीर्षक है, लोक व्यवस्था और प्रशान्ति बनाये रखना। इस शीर्षक की शुरुआत धारा 129crpc से होती है और धारा 148 तक चलता है।। अध्याय 10 के इस शीर्षक को निम्नलिखित उपशीर्षकों में विभाजित किया गया है:- A- विधि विरुद्ध जमाव (Unlawful assemblies) B- लोक न्यूसेन्स।        (Public nuisances) C- न्यूसेन्स या आशंकित खतरे के अर्जेन्ट मामले (Urgent cases of nuisance or apprehended danger) D- यथावर सम्पति के बारे में विवाद (Disputes as to immovable property)     इस लेख में उपशीर्षक Cन्यूसेन्स या आशंकित खतरे के अर्जेन्ट मामले (Urgent cases of nuisance or apprehended danger) के बारे में ही बात करेंगे। इस शीर्षक में दो महत्वपूर्ण धाराएँ दी हुई है धारा 144 और धारा 144A crpc. इस लेख में सिर्फ 144 crpc के प्राविधानों पर ही चर्चा करतें है:-   धारा 144 crpc एक बहुचर्चित धारा है और शासन प्रशासन द्वारा सबसे ज़्यादा इस्तेमाल की जाती है,, तो देखते है कि यह धारा क्या है?? क्या है धारा 144 CrPC.. सबसे पहले कानूनी प्राविधानों ओर एक ...

पुलिस रिपोर्ट (FIR) दर्ज़ न करे तो क्या करें? कोर्ट से रिपोर्ट कैसे दर्ज़ करवायें??

     वैसे तो किसी भी संज्ञेय अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज़ करने से मना नही करना चाहिए इस सम्बंध में धारा 154 CrPC में भी प्राविधान दिया गया है एवंम माननीय सर्वोच्च न्यायालय भी कह चुका है, परंतु व्यवहारिक रूप में देखने मे ये आया है कि पुलिस थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट किसी भी थाने में आसानी से दर्ज़ नही की जाती है। जेन्युन घटना होने के बाद भी पीड़ित को महीनों पुलिस अधिकारियों के यहाँ चक्कर लगाना पड़ता है, शिकायतकर्ता की चप्पलें घिस जाती है लेकिन FIR दर्ज़ नही होती।। कभी तो यह भी देखने मे आया है बलात्कार जैसी जघन्य घटना की भी पुलिस रिपोर्ट दर्ज़ नही करती। पुलिस द्वारा थाने में रिपोर्ट दर्ज़ न किये जाने के अपने कारण है हालांकि वो कारण अपने आप को बचाने के लिए ही है कोई विधिक कारण नही है, पुलिस ज़्यादातर रिपोर्ट इसलिए दर्ज़ नही करती कि उस थाना क्षेत्र का अपराधों का आंकड़ा ज़्यादा न हो, मैं समझता हूं शासन की दृष्टि में इस तरह से आंकड़ो को छिपाकर अच्छा बनने का प्रयास करना अच्छी बात नही है।। चलिये समझ लेतें है कि यदि पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज करने से मना कर देती है तो क्या करे...

अन्तराष्ट्रीय श्रम दिवस कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य।।

1 मई को पूरी दुनियाँ में अन्तराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है, यह दिन पूरी दुनियाँ के मजदूरों, मेहनतकशों तथा सर्वहारा वर्ग के नाम रहता है। इस दिन मेहनतकशों को 8 घण्टे काम करने का विशाल आंदोलन खड़ा हुआ था।।   मेहनतकश, मजदूर वर्ग ने पूरी दुनियाँ के विकास को अपने खून पसीने से सींचा हैं। इस वर्ष का अन्तराष्ट्रीय श्रम दिवस उन्ही करोड़ो मजदूरों के नाम समर्पित है।। हम्हे इस बात को भी आज ढ्यान देना होगा कि इस कोरोना महामारी के चलते आज भी अगर कोई ऐसा वर्ग है जो सबसे ज़्यादा तबाह हो रहा है तो वह श्रमिक वर्ग ही है। अप्रैल 2020 के दूसरे हप्ते में अन्तराष्ट्रीय श्रम संगठन ने कहा था कि अकेले भारत मे 40 करोड़ लोग इस लॉक डाउन के चलते गरीबी में फंस सकते है,, सबसे ज़्यादा असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को इस लॉक डाउन से तबाही का सामना करना पड़ेगा।। ऐसी विषम परिस्थितियों में जब सर्वहारा वर्ग आज फिर एक बार भूंखमरी की कगार पर पहुँच रहा है , तब फिर से अन्तराष्ट्रीय मजदूर दिवस की यादों को ताजा करना प्रासंगिक हो जाता है।।   अन्तराष्ट्रीय मजदूर दिवस का संक्षिप्त इतिहास:-     यह बात शुरू...