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Showing posts from 2020

बार काउंसिल ऑफ इण्डिया ने एडवोकेट्स के कल्याण के लिये प्रधानमंत्री मोदी जी को 10 सूत्रीय मांगपत्र दिया।

कोविड-19 के चलते पूरे देश की जिले की निचली अदालतें 21 मार्च के बाद से ही बन्द चल रही है, क्योंकि कोर्ट कैंपस में Social distancing का पालन करना मुमकिन नही हो पाता इस कारण जहां एक तरफ पूरा देश अनलॉक-1 से धीरे-धीरे खुलने लगा है । बाजार का मॉल भी alternate day के हिसाब से खुलने लगे है, सरकारी, अर्धसरकारी तथा निजी कार्यालय भी सुरक्षा मानकों के साथ खुलने लगे है, परन्तु जिलों की अदालते अभी भी बंद चल रही है।   Highlight Ad Code निचली अदालतों में एडवोकेट्स का बहुत बड़ा वर्ग है जो साधारण प्रष्ठभूमि वाले परिवारों से आता है, एक समय हुआ करता था जब वकालत आय से ज़्यादा मान-सम्मान का पेशा हुआ करता था, परन्तु आज स्थितियां बदल गयी है, आजकल हर आय वर्ग के परिवारों से एडवोकेट्स वकालत करने आ रहे है। बढ़ती बेरोजगारी के चलते कोर्ट कैंपस बेरोजगार नवयुवकों का डंपिंग ग्राउंड बनते जा रहे है, ऐसी स्थिति में आज किसान का बेटा, मजदूर का बेटा, रिक्शे वाले का बेटा, सब्जी वाले का बेटा तथा मध्यम एवं लोअर मध्यम वर्ग के परिवारों से भी नवजवान आकर वकालत कर रहे हैं। You tube video link..👇 https://youtu.be/4gVEw3L...

PM Cares fund is not a Public Authority under RTI..says PMO. PM Cares फण्ड पर RTI क्यों नही लागू होता?

देश मे जैसे ही कोविड-19 को महामारी घोषित किया गया कि वैसे ही माननीय प्रधानमंत्री जी श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने PM Cares  नाम के एक कोष की स्थापना की और पूरे देश को यह संदेश दिया कि यह राहत कोष कोरोना महामारी से लड़ने के लिए है। माननीय मोदी जी ने देशवासियों से इस राहत कोष में दान देने की याद से ज़्यादा अपील भी की।  PM Cares की स्थापना के बाद से ही इस कोष पर विपक्षी पार्टियों एवम अन्य बुद्धजीवियों के द्वारा सवाल उठाये जा रहे थे, श्रीमती सोनिया गाँधी जी के द्वारा भी इस राहत कोष (PM Cares fund ) को लेकर माननीय प्रधानमंत्री जी को एक चिठ्ठी लिखी गयी और यह आग्रह किया गया कि पीएम केयर्स कोष में अभी तक जमा की गई सम्पूर्ण धनराशि को पूर्व से ही स्थापित प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा राहत कोष में स्थानांतरित कर दी जाय। सोनिया जी की इस चिट्ठी के बाद भी राजनीति एक बार फिर से शुरू हो गयी थी और PM Cares fund को लेकर चर्चा फिर से तेज़ होना शुरू हो गयी थी। आपको बताते चले कि इसी दौरान हर्षकान्दूकरी के द्वार सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत PM Cares fund से सम्बन्ध में सम्पूर्ण...

क्या पति अपनी पत्नी से भरण पोषण की मांग कर सकता है..?? ( Maintenance for Husband under Hindu law..)

जिस तरह से पत्नी बच्चों एवम माता-पिता के लिये दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 में भरण पोषण का specific provision दिया हुआ है ठीक उस तरह से तो पति के लिये भरण पोषण प्राप्त करने हेतु ऐसा कोई specific provision नही है, परन्तु हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 24 एवम 25 में इस संबंध में प्राविधान दिये गए है। Highlight Ad Code    धारा 24 हिन्दू विवाह अधिनियम में यह प्राविधान दिया गया है कक यदि पति पत्नी के मध्य हिन्दू विवाह अधिनियम के अन्तर्गत किसी न्यायालय में कोई मामला विचाराधीन है तो उस मामले के विचाराधीन रहने के दौरान पति या पत्नी दोनों में से कोई भी एक दूसरे से गुजारा भत्ता की मांग कर सकता है। देखते है अधिनियम का धारा 24 का प्राविधान..   24.  वाद  लम्बित  रहते  भरण- पोषण  और  कार्यवाहियों  के  व्यय -जहां कि इस अधिनियम के अधीन होने वाली किसी कार्यवाही में न्यायालय को यह प्रतीत हो कि, यथास्थिति, पति या पत्नी की ऐसी कोई स्वतंत्र आय नहीं है जो उसके संभाल और कार्यवाही के आवश्यक व्ययों के लिए पर्याप्त हो वहां वह पति या पत्नी के ...

क्या कहती है धारा 151crpc..?? ( Section-151 CrPC. )

दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की  धारा 151 , पुलिस की निवारक शक्ति (Preventive Power) है, जिसके अंतर्गत संज्ञेय अपराधों को कारित होने से को रोकने के लिए गिरफ्तारी की जा ती है,जिससे कि संज्ञेय अपराधों को होने से रोका जा सके। जहां दो पक्षो के मध्य झगड़े की संभावना होती है वहां पुलिस धारा 151 के अंतर्गत दोनो या एक पक्ष को गिरफ्तार करके मजिस्ट्रेट के  समक्ष प्रस्तुत करती है ।   क्या कहती है धारा 151 crpc :- The Code of Criminal Procedure, 1973 / Arrest to prevent the commission of cognizable offences. (1) A police officer knowing of a design to commit any cognizable offence may arrest, without orders from a Magistrate and without a warrant, the person so designing, if it appears to such officer that the commission of the offence cannot be otherwise prevented. (2) No person arrested under sub-section (1) shall be detained in custody for a period exceeding twenty-four hours from the time of his arrest unless his further detention is required or authorised under a...

सामान्य उद्देश्य का क्या अर्थ होता है ? ( Meaning of Common Object )

इससे पहले लेख में सामान्य आशय के सम्बंध में धारा 34 भारतीय दण्ड संहिता में दिये गये प्राविधानों के बारे में चर्चा की गई थी, यह भी बताया गया था संयुक्त उत्त्तरदायित्व का सिद्धांत किसे कहते है, परन्तु सामान्य उद्देश्य को जाने बगैर संयुक्त उत्त्तरदायित्व के सिद्धांत की बात पूरी Highlight Ad Code नही होती। .  इस लेख में सामान्य उद्देश्य के बारे में ही जानते है। धारा 149 भारतीय दण्ड संहिता में सामान्य उद्देश्य के बारे में बताया गया है। धारा 149 विधि विरुद्ध जमाव के प्रत्येक सदस्य पर प्रतिनिहित दायित्व अधिरोपित करती है यदि वे स जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसारित करने में कोई अपराध करते हैं या वे सभी सभी विधि विरुद्ध जमाव के सदस्य यह जानते है कि उनके सामान्य उद्देश्य को अग्रसारित करने के लिये अपराध किया जाएगा। सबसे पहले धारा 149 भारतीय दण्ड संहिता में दिये गये प्राविधान पर एक नज़र डाल लेते है- Sectuon 149 The Indian Penal Code, 1860 Every member of unlawful assembly guilty of offence committed in prosecution of common object. If an offence is committed by any member...

अपराधों में संयुक्त दायित्व का सिद्धांत (Principle of joint responsibility in Crimes ) सामान्य आशय (Common Intention)

वैसे तो किसी भी तो किसी भी आपराधिक कृत्य के लिए कोई भी व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से ही जिम्मेदार होता है, परन्तु जहां कहीं पर कोई अपराधिक कृत्य दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा ऐसी परिस्थितियों में किया जाता है जहां यह सुनिश्चित करना मुश्किल हो जाता है कि वास्तव में अपराध किस व्यक्ति के द्वारा किया गया है तब उन सभी व्यक्तियों को संयुक्तरूप से उस अपराध के लिये उत्तरदायी माना जाता है।     भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 से लेकर 38 तक तथा धारा 149 में उन सभी परिस्थितियों के बारे में प्राविधान दिये गये है जिनमे जिनमें संयुक्त आपराधिक उत्त्तरदायित्व को दण्डनीय बनाया गया है। इस लेख में धारा 34 भारतीय दण्ड संहिता में दिये गये सामान्य आशय से सम्बंधित प्राविधानों के बारे में ही चर्चा करेंगे, सामान्य उद्देश्य धारा 149 की चर्चा दूसरे लेख में करेंगे। Highlight Ad Code सर्वप्रथम भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 में दिये गये प्राविधान पर एक नज़र डालते हैं। Sec.34.IPC-Acts done by several persons in furtherance of common intention.— When a criminal act is done by several persons in furt...

ससुराल में पत्नी के कानूनी अधिकार (Legal right of wife in husband's house )

भारत का कानून शादीशुदा महिलाओं को ससुराल में कई तरह के विधिक अधिकार देता है, परन्तु महिलाओं को अपने कानूनी अधिकारों की जानकारी न होने के कारण महिलायें अत्याचार सहने पर मजबूर होती है। आये दिन अखबारों या सूचना के अन्य साधनों के माध्यम से यह खबरें मिलती रहती है कि दहेज़ की मांग को लेकर महिलाओं की हत्या तक कर दी जाती है या फिर महिला को शारीरिक और मानसिक रूप से इतना ज्यादा प्रताड़ित किया जाता है कि वह मजबूर होकर आत्म हत्या कर लेती है। ससुराल में महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा की घटनायें भी आम हो गयी है, आंकड़े यह भी बताते है कि लॉकडाउन के दौरान घरों के अंदर घरेलू हिंसा की घटनाओं में बढोत्तरी हुई है। इस लेख में शादीशुदा महिलाओं को भारत के कानून में कौन-कौन से महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार दिये गये है, उन्ही अधिकारों के बारे में चर्चा करते हैं।       भारत मे महिलाओं को जो कानूनी अधिकार दिये गये है उन अधिकारों को निम्नलिखित रूप से विभाजित किया जा सकता है- 1- गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार; 2- भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार; 3- स्त्रीधन को प्राप्त करने का अधिकार; 4- पति के साथ समर...

भारतीय दण्ड संहिता के निर्माण से पूर्व अपराध विधि का संक्षिप्त इतिहास।

 किसी भी समाज मे प्रचलित सभ्यता और संस्कृति का ज्ञान उस समाज की विधि व्यवस्था से होता है। मानव सभ्यता के साथ ही अपराध विधि का सूत्रपात हुआ था। जब से मानव ने प्रजनन की सहज प्रवृत्तियों की परितृप्ति हेतु स्त्रियों और पुरुषों के एक सम्मिलित समुदाय का स्वप्न देखा, और परिवार के रूप में एक संगठित समाज मे सामूहिक रूप से रहना प्रारम्भ किया; वैसे ही आपराधिक विधि की आवश्यकता का अनुभव किया जाने लगा था। प्रारम्भ में मनुष्य अपने प्रति किये गये अपकार का निर्णय स्वयं ही करता था और अपकार करने वाले को स्व-विवेकानुसार दण्ड देता था, जो कि सामान्यतः बहुत ही कठोर और बर्बर हुआ करता था।    भूतकाल में समाज मे अपराधियों के सुधार और पुनर्वास जैसी कोई सोंच नही थी, इसलिये उस समय का समाज अपराध की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए दण्ड की कठोरता में विश्वास करता था जिससे कि अपराधी स्थायी रूप से अपराध करने लायक न रह जाय। दण्ड की कठोरता का पुरातन सिद्धान्त वर्तमान में दण्ड के सुधारात्मक सिद्धान्त में परिवर्तित हो गया है।     दण्ड विधि के उदभव के सम्बंध में प्रसिद्ध विधिवेत्ता प्रो.सोरोकिन ने कह...

भारतीय दण्ड संहिता के आपराधिक प्राविधान किन व्यक्तियों पर लागू नही होते??

सामान्यतः भारत मे रह रहा कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह का आपराधिक कृत्य करता है तो उस पर भारतीय दण्ड संहिता में दिये गये आपराधिक धाराओं के तहत मुकदमा चलाया जाता है, परन्तु भारत में कुछ ऐसे विशिष्ट व्यक्ति भी है जिनके विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत कोई भी आपराधिक अभियोग पंजीकृत नही किया जा सकता। इस लेख में संक्षिप्त में उन्ही व्यक्तियों के बारे में जानते है कि वो कौन व्यक्ति है जिनको दण्ड न्यायालयों की अधिकारिता से परे रखा गया है, और दण्ड संहिता के उपबन्ध उन पर लागू नही होते। ऐसे व्यक्तियों के बारे निम्नलिखितरूप से बताया जा रहा है। 1- राष्ट्रपति तथा राज्यपाल- (President and Governor)   भारत का राष्ट्रपति तथा राज्यों के राज्यपालों को भारतीय दण्ड संहिता के प्राविधानों से बाहर रखा गया है। इन लोंगो के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत कोई भी अभियोग पंजीकृत नही किया जा सकता। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 361 में यह कहा गया है कि   "किसी भी न्यायालय में कोई भी आपराधिक प्रक्रिया न तो राष्ट्रपति के विरुद्ध और न ही किसी राज्यपाल के विरुद्ध उनकी पदावधि के दौरान न तो दाखिल की जा...

केंद्र व राज्य सरकार लॉक-डाउन में ज़रूरतमंद अधिवक्ताओं को आर्थिक मदद की घोषणा करें ।

अधिवक्ता न्यायप्रशासन का एक अभिन्न अंग है, अधिवक्ता समाज सबसे कम संसाधनों में हर मौसम में हर तरह की तकलीफों  को बर्दाश्त करते हुऐ आम लोंगो समाज व व्यवस्था द्वारा सताये गये लोंगो को न्याय दिलाने के साथ साथ अपनी जीविका चलाता है। अधिवक्ता समाज अपने क्लाइन्ट के लिये पूरी व्यवस्था से लड़ने का जज़्बा रखता है।। एक समय हुआ करता था, जब ये पेशा जीविका चलाने से ज़्यादा नाम और शोहरत के लिये होता था बड़े-बड़े घरों व राय बहादुर, खान बहादुर परिवारों के लोग ही ज़्यादातर इस पेशे में हुआ करते थे।। परन्तु आज स्थितियां बदल गयी है आज मध्यम वर्ग के साथ साथ किसान का बेटा, मजदूर का बेटा, आम मेहनतकश का बेटा अर्थात हर आय वर्ग के लोग इस पेशे में आ रहे है, और लोगो को न्याय दिलाने का प्रयास करते हुए अपनी जीविका चला रहे हैं।।   पिछले 50 दिनों से लॉक डाउन के चलते पूरे देश मे जिला न्यायालय भी बन्द है जिससे अधिवक्ताओं की आय का स्रोत भी पूरी तरह बन्द है, ऐसे अधिवक्ता जो अर्थिकरूप से कमजोर परिवारों और पिछड़े वर्ग से है, ऐसे अधिवक्ता जिन्होंने अपनी वकालत कुछ एक सालों पहले ही शुरू की है, ऐसे अधिवक्ता जिनके पास सी...

Mens Rea (दुराशय ) अपराध दण्ड संहिता का एक प्रमुख तत्व है।

न्यायमूर्ति कोक ने अपनी पुस्तक 'थर्ड इंस्टीट्यूट' सन्त अगस्ताइन के धर्मोपदेश का आधार लेते हुये एक सूत्र का प्रयोग किया है। यह सूत्र है -     "ACTUS NON FACIT REUM NISI MENS SIT REA" (ऐक्ट्स नॉन फेसिट रियम निसी मेन्स सिट रिया )  इसका अर्थ है कि दुराशय के बिना केवल कार्य किसी व्यक्ति को अपराधी नही बनाता। आज यह सूत्र अंग्रेजी आपराधिक विधि का अधार-स्तंभ बन गया है। यह सूत्र उतना ही प्राचीन है जितनी अंग्रेजी दाण्डिक विधि ।     उपरोक्त सूत्र का विश्लेषण करने से यह सुनिश्चित होता है कि किसी कृत्य को अपराध मानने के लिये दो आवश्यक तत्वों का होना आवश्यक है-- 1-   शारीरिक या भौतिक कृत्य  (Actus Reus ) 2-    मानसिक तत्व या दुराशय   (Mens Rea  )    उपरोक्त दोनों तत्वों को विस्तार से समझते हैं :- (1) शारीरिक या भौतिक कृत्य (Actus Reus ) शारीरिक या भौतिक कृत्य से तात्पर्य  सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनो तरह से कार्यो से है। सकारात्मक कृत्य (Positive action)  से तात्पर्य किसी मनुष्य की सकारात्मक गतिविधि से...

अपराध किये जाने के विभिन्न स्तर? (Different stages in commission of a crime)

किसी भी अपराध को मूर्त स्वरूप देने के लिये या अपराध करने से पूर्व अपराधी विभिन्न स्तरों से होकर गुजरता है। यदि कोई अपराध अचानक या अपरिहार्य दुर्घटना (Inevitable Accident) के रूप में घटित होता है तो उसको अपराध के विभिन्न स्तरों से होकर नही गुजरना पड़ता है, इसलिए अपरिहार्य दुर्घटना को एक सफल बचाव या अपवाद माना जाता है। इस प्रकार साशय या जानबूझकर किये गये गये अपराध को करने के लिये एक अपराधी सामान्यतया निम्न स्तरों से होकर गुजरता है:- 1- आशय (Intention) 2- तैयारी  (Preparation) 3- प्रयास या प्रयत्न (Attempt) 4- अपराध का निष्पादन (Execution)   इस तरह से एक अपराधी उक्त स्तरों से गुजरता हुआ किसी अपराध को अंजाम देता है। अब उक्त सभी स्तरों के बारे में एक एक करके विस्तारपूर्वक जानते हैं। 1-आशय (Intention)    प्रत्येक अपराध के पीछे कोई न कोई आशय अवश्य होता है। बिना कारण के कोई कार्य नही होता। कारण आशय को जन्म देता है। यदि कोई कार्य आशय के अभाव में घटित होता है तो उसे दुर्घटना (Accident) माना जाता है तथा दुर्घटना या दुर्भाग्यवश घटित घटना के फलस्वरूप होने वाल...

दण्ड प्रक्रिया संहिता का इतिहास एवम विकास (History and development of Criminal Procedure Code)

दण्ड प्रक्रिया संहिता का इतिहास लगभग 122 वर्ष पुराना होने आया है। व्यवस्थित रूप से यह संहिता प्रथम बार सन 1898 में 'दण्ड प्रक्रिया संहिता'1898 के रूप में हमारे सामने आई थी। उस समय इसे जम्मू कश्मीर, नागालैंड एवं असम से जनजातीय क्षेत्रो को छोड़कर समस्त भारत पर लागू किया गया था। समय समय पर आवश्कयतानुसार दण्ड प्रक्रिया संहिता में संशोधन होते रहे। सबसे महत्वपूर्ण संशोधन सन 1923 व 1955 में हुये, ये संशोधन दण्ड प्रक्रिया संहिता को अत्यंत विस्तृत एवं प्रक्रिया को सरल बनाने तथा यथासम्भव शीघ्र विचारण की व्यवस्था करने वाले थे।    समय समय पर विभिन्न राज्यो की विधानपालिकाओं द्वारा भी कई स्थानीय संशोधन किये गये, जिनका मुख्य उद्देश्य न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक करना था, जैसा कि संविधान के अध्याय 4 में 'राज्य के नीति निदेशक सिद्धान्तों' के अंतर्गत उपबन्धित किया गया है। लेकिन इन समस्त संशोधनों के बाद भी 1898 की दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्राविधान व्यवहारिक रूप से अपरिवर्तनीय ही रहे। सन 1955 में प्रथम विधि आयोग की स्थापना तक इनमें महत्वपूर्ण परिवर्तन करने के कोई प्रयास नही कि...