Skip to main content

बार काउंसिल ऑफ इण्डिया ने एडवोकेट्स के कल्याण के लिये प्रधानमंत्री मोदी जी को 10 सूत्रीय मांगपत्र दिया।



कोविड-19 के चलते पूरे देश की जिले की निचली अदालतें 21 मार्च के बाद से ही बन्द चल रही है, क्योंकि कोर्ट कैंपस में Social distancing का पालन करना मुमकिन नही हो पाता इस कारण जहां एक तरफ पूरा देश अनलॉक-1 से धीरे-धीरे खुलने लगा है । बाजार का मॉल भी alternate day के हिसाब से खुलने लगे है, सरकारी, अर्धसरकारी तथा निजी कार्यालय भी सुरक्षा मानकों के साथ खुलने लगे है, परन्तु जिलों की अदालते अभी भी बंद चल रही है।
  Highlight Ad Code निचली अदालतों में एडवोकेट्स का बहुत बड़ा वर्ग है जो साधारण प्रष्ठभूमि वाले परिवारों से आता है, एक समय हुआ करता था जब वकालत आय से ज़्यादा मान-सम्मान का पेशा हुआ करता था, परन्तु आज स्थितियां बदल गयी है, आजकल हर आय वर्ग के परिवारों से एडवोकेट्स वकालत करने आ रहे है। बढ़ती बेरोजगारी के चलते कोर्ट कैंपस बेरोजगार नवयुवकों का डंपिंग ग्राउंड बनते जा रहे है, ऐसी स्थिति में आज किसान का बेटा, मजदूर का बेटा, रिक्शे वाले का बेटा, सब्जी वाले का बेटा तथा मध्यम एवं लोअर मध्यम वर्ग के परिवारों से भी नवजवान आकर वकालत कर रहे हैं।
You tube video link..👇
https://youtu.be/4gVEw3LRX-E

/> कोविड-19 के चलते जबसे पूरा देश लॉक-डाउन हुआ तबसे लगातार निचली अदालते बन्द चल रही है। लगातार निचली अदालतों के बन्द रहने से ऐसे परिवारों से आने वाले एडवोकेट्स की आर्थिक स्थिति दयनीय होती जा जा रही है, चूंकि एडवोकेट्स के पास आय का कोई दूसरा जरिया नही होता इसलिए एक बड़ा तबका है ज़िले की कचहरियों में जिसके सामने रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है। इन स्थितियों के बावजूद भी एडवोकेट्स समुदाय की आर्थिक मदद के लिये न तो किसी भी प्रदेश सरकार द्वारा और न ही केंद्र सरकार द्वारा कोई भी पहल नही की गई। यहां तक कि प्रदेश की बार कौंसिल और बार कौंसिल ऑफ इण्डिया के द्वारा भी इस दिशा में कोई सार्थक प्रयास नही किया गया।
     ज़िले के स्तर पर स्थानीय बार एसोसिएशनस ने अवश्य अपने स्त्रप पर कुछ एडवोकेट्स को आर्थिक मदद दी है, परन्तु वह नाकाफ़ी है, आपको यह भी बताता चलूं कि कोर्ट कैंपस के अंदर एडवोकेट्स को छोड़कर टाइपिस्ट, मुंशी तथा वेंडर्स की भी एक अच्छी खासी तादात होती है। कोर्ट बन्द होने के कारण इन लोंगो का भी आय का कोई भी साधन नही रहा, जिस कारण इन लोंगो के समक्ष भी रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है, दुःख व हैरानी की बात ये है कि इन लोंगो के बारे भी किसी भी सरकार के द्वारा नही सोंचा गया।
  अभी हाल ही में बार कौंसिल ऑफ इण्डिया के द्वारा प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को अपना वह वादा याद दिलाया गया जो उन्होंने BCI के कार्यक्रम में किया था, और अधिवक्ताओं के कल्याण से सम्बंधित 10 सूत्रीय मांगपत्र का ज्ञापन दिया है।

बार कौंसिल ऑफ इण्डिया के द्वारा प्रधानमंत्री मोदी जी अधिवक्ताओं के कल्याण हेतु की गई मांगे:-

1. Insurance cover up to Rs. 20, 00, 000/- for the Lawyers and their families (dependents).
2. Medi-claim: free medical treatment of every type of disease in best Hospitals of India & other countries (if needed) for the Advocates. Lawyers should be provided a “special card” for this purpose, so that they could avail the benefit of this schemes anytime, anywhere.
3. Stipend for needy new entrants at the Bar upto 5 years of their practice (Minimum Rs. 10, 000/- Per Month)
4. Scheme for pension for old/indigent Advocates and provision for family pension in case of untimely death of Advocates (Minimum Rs. 50, 000/- per month).
5. Advocates Protection Act to be enacted for Advocates of the Country by the Parliament
6. All the Bar Associations of the country should have adequate building/accommodation/sitting facilities with well-equipped Libraries, e-libraries, with internet, toilets etc. and facilities for lady advocates.
7. Interest-free house loans, loans for Library, Vehicle for the needy Advocates. The government should acquire lands at cheaper rates for the Housing of Advocates.
8. Legal Services Authority Act – Amendments & necessary changes should be made in the Act so that the functions under this Act could be discharged by the Lawyers (and not the Judges or Judicial Officers only.
9. All the Acts (which provide for appointments of retired Judges/Judicial Officers as the Presiding Officers/ Member of different Tribunals, Commissions of Forums/ Authorities) should be properly amended so that competent Advocates (and not only the Judges) could also be appointed on these places.
10. In case of untimely death of any Advocate (below 65 years of age) due to accident, murder, any disease, the Government should grant the family/dependents at least a sum of Rs 50, 00, 000 /- (fifty lakhs)
    बार कौंसिल ऑफ इण्डिया ने मोदी जी से मांगपत्र के जरिये यह मांग की है उक्त मांगों को पूरा करने के लिये केंद्रीय बजट में 50,000/- करोड़ रुपये की धनराशि को आवंटित करने की मांग की।
 यह थी दोस्तो एडवोकेट्स समुदाय से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी, ये लेख आपको कैसा लगा कमेंट्स करके अवश्य बतायें और अपने सुझाव भी दें। कानून की अन्य जानकारियों के लिये Join me on my youtube channel..👇
https://www.youtube.com/channel/UCy0GcvBhrzLBlplyUgK8uOA

Tags-Advocates, Bar Council Of India, #KarimAhmad Siddiqui Advocate, #10 demands for the welfare of lawyers, PM Modi,


Comments

Popular posts from this blog

सामान्य उद्देश्य का क्या अर्थ होता है ? ( Meaning of Common Object )

इससे पहले लेख में सामान्य आशय के सम्बंध में धारा 34 भारतीय दण्ड संहिता में दिये गये प्राविधानों के बारे में चर्चा की गई थी, यह भी बताया गया था संयुक्त उत्त्तरदायित्व का सिद्धांत किसे कहते है, परन्तु सामान्य उद्देश्य को जाने बगैर संयुक्त उत्त्तरदायित्व के सिद्धांत की बात पूरी Highlight Ad Code नही होती। .  इस लेख में सामान्य उद्देश्य के बारे में ही जानते है। धारा 149 भारतीय दण्ड संहिता में सामान्य उद्देश्य के बारे में बताया गया है। धारा 149 विधि विरुद्ध जमाव के प्रत्येक सदस्य पर प्रतिनिहित दायित्व अधिरोपित करती है यदि वे स जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसारित करने में कोई अपराध करते हैं या वे सभी सभी विधि विरुद्ध जमाव के सदस्य यह जानते है कि उनके सामान्य उद्देश्य को अग्रसारित करने के लिये अपराध किया जाएगा। सबसे पहले धारा 149 भारतीय दण्ड संहिता में दिये गये प्राविधान पर एक नज़र डाल लेते है- Sectuon 149 The Indian Penal Code, 1860 Every member of unlawful assembly guilty of offence committed in prosecution of common object. If an offence is committed by any member...

ससुराल में पत्नी के कानूनी अधिकार (Legal right of wife in husband's house )

भारत का कानून शादीशुदा महिलाओं को ससुराल में कई तरह के विधिक अधिकार देता है, परन्तु महिलाओं को अपने कानूनी अधिकारों की जानकारी न होने के कारण महिलायें अत्याचार सहने पर मजबूर होती है। आये दिन अखबारों या सूचना के अन्य साधनों के माध्यम से यह खबरें मिलती रहती है कि दहेज़ की मांग को लेकर महिलाओं की हत्या तक कर दी जाती है या फिर महिला को शारीरिक और मानसिक रूप से इतना ज्यादा प्रताड़ित किया जाता है कि वह मजबूर होकर आत्म हत्या कर लेती है। ससुराल में महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा की घटनायें भी आम हो गयी है, आंकड़े यह भी बताते है कि लॉकडाउन के दौरान घरों के अंदर घरेलू हिंसा की घटनाओं में बढोत्तरी हुई है। इस लेख में शादीशुदा महिलाओं को भारत के कानून में कौन-कौन से महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार दिये गये है, उन्ही अधिकारों के बारे में चर्चा करते हैं।       भारत मे महिलाओं को जो कानूनी अधिकार दिये गये है उन अधिकारों को निम्नलिखित रूप से विभाजित किया जा सकता है- 1- गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार; 2- भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार; 3- स्त्रीधन को प्राप्त करने का अधिकार; 4- पति के साथ समर...

PM Cares fund is not a Public Authority under RTI..says PMO. PM Cares फण्ड पर RTI क्यों नही लागू होता?

देश मे जैसे ही कोविड-19 को महामारी घोषित किया गया कि वैसे ही माननीय प्रधानमंत्री जी श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने PM Cares  नाम के एक कोष की स्थापना की और पूरे देश को यह संदेश दिया कि यह राहत कोष कोरोना महामारी से लड़ने के लिए है। माननीय मोदी जी ने देशवासियों से इस राहत कोष में दान देने की याद से ज़्यादा अपील भी की।  PM Cares की स्थापना के बाद से ही इस कोष पर विपक्षी पार्टियों एवम अन्य बुद्धजीवियों के द्वारा सवाल उठाये जा रहे थे, श्रीमती सोनिया गाँधी जी के द्वारा भी इस राहत कोष (PM Cares fund ) को लेकर माननीय प्रधानमंत्री जी को एक चिठ्ठी लिखी गयी और यह आग्रह किया गया कि पीएम केयर्स कोष में अभी तक जमा की गई सम्पूर्ण धनराशि को पूर्व से ही स्थापित प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा राहत कोष में स्थानांतरित कर दी जाय। सोनिया जी की इस चिट्ठी के बाद भी राजनीति एक बार फिर से शुरू हो गयी थी और PM Cares fund को लेकर चर्चा फिर से तेज़ होना शुरू हो गयी थी। आपको बताते चले कि इसी दौरान हर्षकान्दूकरी के द्वार सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत PM Cares fund से सम्बन्ध में सम्पूर्ण...