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साक्ष्य क्या होता है? साक्ष्य कितने प्रकार के होते हैं?? (What is Evidence? types of Evidence?)

साक्ष्य अर्थात एविडेंस (Evidence) लैटिन शब्द एविडेरा (Evidera) से लिया गया है; जिसका अर्थ होता है सत्यता को पता लगाना, निश्चित करना अथवा साबित करना। कुछ विधि शास्त्रियों ने साक्ष्य की निम्नलिखित रूप से परिभाषित किया है:- ब्लैकस्टोन के अनुसार "एविडेंस शब्द उसको घोषित करता है जिससे एक पक्ष या अन्य पक्ष के तथ्यों (Facts)  या विवद्दको की सत्यता प्रदर्शित, स्पष्ट अथवा निश्चित होती हो"।     डॉ. जॉनसन के अनुसार, "एविडेंस शब्द सुव्यक्त होने की उस स्थिति को संज्ञापित करता है जो कि साफ प्रकट अथवा विख्यात हो।"   भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 3 में साक्ष्य को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया गया है- 'साक्ष्य' शब्द से ओभिप्रेत है और उसके अंतर्गत आते हैं- 1- वे सभी कथन जिनके जाँच अधीन तथ्यों के विषयों के सम्बंध में न्यायालय अपने सामने साक्षियों द्वारा किये जाने की अनुज्ञा देता है या अपेक्षा करता है, ऐसे कथन मौखिक साक्ष्य कहलाते हैं। 2- न्यायालय के निरीक्षण के लिये पेश किये गये सभी दस्तावेजें ; ऐसे दस्तावेज़ दस्तावेज़ी साक्ष्य कहलाते हैं।   साक्ष्य के ...

भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 को पारित करने की पीछे की पृष्ठभूमि? (Background brief history of Indian Evidence Act 1872.)

        समस्त भारत की सम्पूर्ण न्याय प्रक्रिया  भारतीय साक्ष्य अधिनियम  1872 की बुनियाद पर टिकी हुई है।  साक्ष्य अधिनियम  आपराधिक, सिविल, राजस्व या किसी भी प्रकृति का वाद हो सभी प्रकार की विधियों में निर्णायक भूमिका निभाता है। इस लेख में जानते हैं कि भारत मे साक्ष्य अधिनियम के पारित होने से पूर्व की पृष्ठभूमि क्या थी। भारतीय साक्ष्य अधिनियम पारित होने की पृष्ठभूमि:-    भारत मे अंग्रेजो के शासनकाल में भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 से पूर्व इसके विषय पर कोई व्यवस्थित विधान नही था। प्रेसीडेंसी नगरों मुम्बई, कलकत्ता एवम मद्रास में रॉयल चार्टर के द्वारा स्थापित न्यायालय अंग्रेजी साक्ष्य नियम लागू करते थे। प्रेसीडेंसी शहरों के बाहर अर्थात मुफस्सिल में साक्ष्य के कोई निश्चित नियम नही थे। साक्ष्य विधि सम्बन्ध में अंग्रेजो के ज़माने में कई अधिनियम पारित किये गये थे, क्रमवार सभी अधिनियमों को निम्नलिखित रूप से दिया जा रहा है:- a- साक्ष्य अधिनियम 1835 (Act no. 10 of 1835) b- साक्ष्य अधिनियम 1855 (Act no. 2 of 1855 ) c- साक्ष्य अधिनियम 1855 (A...

परिवाद क्या होता है? न्यायालय में परिवाद कैसे दर्ज़ करते है ??

भारत मे अपराधिक मामलों को दो तरह से दर्ज़ करातें है, पहला किसी भी संज्ञेय अपराध की सूचना पुलिस थाने में देते हैं जहां पुलिस द्वारा धारा 154crpc के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज़ की जाती है, असंज्ञेय अपराध की सूचना जब थाने में दी जाती है तो पुलिस धारा 155crpc के तहत एनसीआर दर्ज़ करती है। इससे स्पष्ट है पहला तरीका तो ये है कि हम अपराधों की सूचना पुलिस में देतें है जहां पुलिस कानून के मुताबिक उसे FIR या एनसीआर के रूप में दर्ज़ करती है।। दूसरा तरीका ये है कि यदि हम अपराधिक मामले की सूचना पुलिस में नही करना चाहते तो सीधेन्यायालय(Court) में घटना का परिवाद दाखिल कर सकते है। परिवाद लिखित और मौखिक दोनो तरह से हो सकता है, परिवाद में घटना के सम्बंध में समस्त तथ्यों को कहा जाता है। परिवाद क्या है?? परिवाद को धारा 2(d)crpc में परिभाषित किया गया है, देखते है परिवाद की क्या परिभाषा दी गयी है:- धारा 2(d)crpc-        "complaint" means any allegation made orally or in writing to a Magistrate, with a view to his taking action under this Code, that some person, whether known or ...

धारा 144 CrPC क्या होती ? धारा 144 को कब और क्यों लगातें हैं??

दण्ड प्रक्रिया संहिता का अध्याय 10 का शीर्षक है, लोक व्यवस्था और प्रशान्ति बनाये रखना। इस शीर्षक की शुरुआत धारा 129crpc से होती है और धारा 148 तक चलता है।। अध्याय 10 के इस शीर्षक को निम्नलिखित उपशीर्षकों में विभाजित किया गया है:- A- विधि विरुद्ध जमाव (Unlawful assemblies) B- लोक न्यूसेन्स।        (Public nuisances) C- न्यूसेन्स या आशंकित खतरे के अर्जेन्ट मामले (Urgent cases of nuisance or apprehended danger) D- यथावर सम्पति के बारे में विवाद (Disputes as to immovable property)     इस लेख में उपशीर्षक Cन्यूसेन्स या आशंकित खतरे के अर्जेन्ट मामले (Urgent cases of nuisance or apprehended danger) के बारे में ही बात करेंगे। इस शीर्षक में दो महत्वपूर्ण धाराएँ दी हुई है धारा 144 और धारा 144A crpc. इस लेख में सिर्फ 144 crpc के प्राविधानों पर ही चर्चा करतें है:-   धारा 144 crpc एक बहुचर्चित धारा है और शासन प्रशासन द्वारा सबसे ज़्यादा इस्तेमाल की जाती है,, तो देखते है कि यह धारा क्या है?? क्या है धारा 144 CrPC.. सबसे पहले कानूनी प्राविधानों ओर एक ...

पुलिस रिपोर्ट (FIR) दर्ज़ न करे तो क्या करें? कोर्ट से रिपोर्ट कैसे दर्ज़ करवायें??

     वैसे तो किसी भी संज्ञेय अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज़ करने से मना नही करना चाहिए इस सम्बंध में धारा 154 CrPC में भी प्राविधान दिया गया है एवंम माननीय सर्वोच्च न्यायालय भी कह चुका है, परंतु व्यवहारिक रूप में देखने मे ये आया है कि पुलिस थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट किसी भी थाने में आसानी से दर्ज़ नही की जाती है। जेन्युन घटना होने के बाद भी पीड़ित को महीनों पुलिस अधिकारियों के यहाँ चक्कर लगाना पड़ता है, शिकायतकर्ता की चप्पलें घिस जाती है लेकिन FIR दर्ज़ नही होती।। कभी तो यह भी देखने मे आया है बलात्कार जैसी जघन्य घटना की भी पुलिस रिपोर्ट दर्ज़ नही करती। पुलिस द्वारा थाने में रिपोर्ट दर्ज़ न किये जाने के अपने कारण है हालांकि वो कारण अपने आप को बचाने के लिए ही है कोई विधिक कारण नही है, पुलिस ज़्यादातर रिपोर्ट इसलिए दर्ज़ नही करती कि उस थाना क्षेत्र का अपराधों का आंकड़ा ज़्यादा न हो, मैं समझता हूं शासन की दृष्टि में इस तरह से आंकड़ो को छिपाकर अच्छा बनने का प्रयास करना अच्छी बात नही है।। चलिये समझ लेतें है कि यदि पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज करने से मना कर देती है तो क्या करे...

अन्तराष्ट्रीय श्रम दिवस कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य।।

1 मई को पूरी दुनियाँ में अन्तराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है, यह दिन पूरी दुनियाँ के मजदूरों, मेहनतकशों तथा सर्वहारा वर्ग के नाम रहता है। इस दिन मेहनतकशों को 8 घण्टे काम करने का विशाल आंदोलन खड़ा हुआ था।।   मेहनतकश, मजदूर वर्ग ने पूरी दुनियाँ के विकास को अपने खून पसीने से सींचा हैं। इस वर्ष का अन्तराष्ट्रीय श्रम दिवस उन्ही करोड़ो मजदूरों के नाम समर्पित है।। हम्हे इस बात को भी आज ढ्यान देना होगा कि इस कोरोना महामारी के चलते आज भी अगर कोई ऐसा वर्ग है जो सबसे ज़्यादा तबाह हो रहा है तो वह श्रमिक वर्ग ही है। अप्रैल 2020 के दूसरे हप्ते में अन्तराष्ट्रीय श्रम संगठन ने कहा था कि अकेले भारत मे 40 करोड़ लोग इस लॉक डाउन के चलते गरीबी में फंस सकते है,, सबसे ज़्यादा असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को इस लॉक डाउन से तबाही का सामना करना पड़ेगा।। ऐसी विषम परिस्थितियों में जब सर्वहारा वर्ग आज फिर एक बार भूंखमरी की कगार पर पहुँच रहा है , तब फिर से अन्तराष्ट्रीय मजदूर दिवस की यादों को ताजा करना प्रासंगिक हो जाता है।।   अन्तराष्ट्रीय मजदूर दिवस का संक्षिप्त इतिहास:-     यह बात शुरू...

प्रथम सूचना रिपोर्ट (F.I.R.) कैसे दर्ज़ करवायें ??

    दण्ड प्रक्रिया संहिता में अपराधों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है जैसा कि FIR और NCR के ब्लॉग में मैंने बताया था, मैंने ये भी बताया था कि प्रथम सूचना रिपोर्ट सिर्फ संज्ञेय अपराधों की ही दर्ज़ की जाती है, इस सम्बंध में भारत का कानून क्या कहता है देखते है...      धारा 154 CrPC में संज्ञेय अपराधों की सूचना दर्ज़ करने के सम्बंध में कानूनी प्राविधान दिये गए हैं, यह धारा तीन उपधाराओं में विभाजित है, आपको यह भी याद दिला दूं कि 2012 में दिल्ली में जो निर्भया बलात्कार की घटना हुई थी उसके बाद पूरे देश मे उबाल से आ गया था और कानून को और सख्त करने को लेकर देश भर में धरना प्रदर्शन हुये थे जिसके उपरान्त सरकार ने महिलाओं से सम्बंधित कानूनों को संशोधित करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्यन्यायमूर्ति श्री जे.एस. वर्मा की अध्यक्षता में एक आयोग बनाया था जिसने महिलाओं से सम्बंधित अपराधों को संशोधन किए जाने के सम्बंध में शिफारिशें दी थी। आयोग द्वारा दी गयी सिफारिशों के प्रकाश में भरतीय दण्ड संहिता एवम दण्ड प्रक्रिया संहिता में महत्वपूर्ण संशोधन हुए थे, उसी ...