मेरे विचार से व्यक्तियों की सोंच इसपर निर्भर करती है कि समाज मे किस तरह का वातावरण है, जिस तरह का समाज मे वातावरण होता है उसीतरह की वहां रहने वाले लोंगो की सोंच बनती जाती है।समाज मे किस तरह का वातारण बने ये सरकार की राजनैतिक व सामाजिक नीतियों पर निर्भर करता है, सरकारों को चाहिए कि ऐसी नीतियां बनाये जो समाज मे समरसता पैदा करें , भाईचारे को बढ़ावा दे और ज़िम्मेदार नगरिक बनने की सोंच पैदा करें।
अफ़सोस पिछले कुछ वर्षों से मौजूद सरकार द्वारा ऐसी नीतियां बनाई जा रही है जिससे सामाजिक वातारण लगातार दूषित होता जा रहा है, समाज मे नागरिकों के बीच समरसता के बजाय वैमनस्यता पैदा होती जा रही है, दुख का विषय है कि जिनके ऊपर समाज को सुधारने की ज़िम्मेदारी है वही लोग समाज को बिगाड़ने में लगे है।यदि समय रहते इसपे नियंत्रण न किया गया तो इसके दूरगामी परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।।।
अफ़सोस पिछले कुछ वर्षों से मौजूद सरकार द्वारा ऐसी नीतियां बनाई जा रही है जिससे सामाजिक वातारण लगातार दूषित होता जा रहा है, समाज मे नागरिकों के बीच समरसता के बजाय वैमनस्यता पैदा होती जा रही है, दुख का विषय है कि जिनके ऊपर समाज को सुधारने की ज़िम्मेदारी है वही लोग समाज को बिगाड़ने में लगे है।यदि समय रहते इसपे नियंत्रण न किया गया तो इसके दूरगामी परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।।।
Comments
Post a Comment
यदि आपको ये लेख पसंद आया हो तो लाइक करें शेयर करें तथा फॉलो करें, कमेंट्स करके अपने बहुमूल्य सुझाव अवश्य दें।।