वैसे हमारे यहां पर कहावत है कि माता पिता के घर से बेटी की डोली निकलती है, और पति के घर से अर्थी निकलती है, यह भी कहा जाता है कि बेटियां पराया धन होती है, परंतु अब ये सब बातें गुजरे ज़माने की बातें हो चुकी है। आजकल आये-दिन देखने सुनने में आता रहता है कि कही दहेज की मांग के कारण कहीं महिला के लड़के पैदा न होने पर और कहीं पर और किसी बात को लेकर महिलाओं का उत्पीड़न किया जाता है।ऐसी स्थिति में यदि महिलाओं को शादी के बाद अपने कानूनी अधिकारों के बारे में जानकारी हो तो महिला उत्पीडनकी घटनाओं का सामना किया जा सकता है।तो आईये जनतें है शादी के बाद महिलाओं को कौन कौन से अधिकार कानून द्वारा दिये गए है।।
सम्मान पूर्वक जीवन जीने का अधिकार- देश के संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी को सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार है तो शादी के बाद भी महिला को ये अधिकार उसी तरह मिला रहता है ,ससुराल के किसी भी सदस्य को ये कोई अधिकार नही है कि महिला के जीवन को कमतर करके देखे और उसे गरिमामयी ज़िन्दगी से मरहूम करे।।
घर मे रहने का अधिकार:- शादी के बाद एक महिला को ये सम्पूर्ण अधिकार है कि वह जिस घर मे विदा होकर गयी है और जहां उसका पति रहता है महिला उसी घर मे रहे, ये बात कोई मायने नही रखती की घर पुश्तैनी है या दादा दादी या नाना नानी का है या फिर घर किराए का है। जहां उसका पति रहता है वहां पर महिला को कानूनी रूप से रहने का पूरा अधिकार प्राप्त होता है। घरेलू हिंसा कानून सन 2005 आने के बाद ये और स्पष्ट हो गया है कि पति की साझी गृहस्ती में रहने के लिए पत्नी को अधिकार प्राप्त है।
भरण पोषण का अधिकार:- दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत एक महिला को ये अधिकार होता है कि वह यदि अपना व अपने बच्चों का भरण पोषण करने में सक्षम नही है तो अपने पति से भरण पोषण की धनराधि की मांग करे। एक महिला शादी के बाद अपने पति के जीवन स्तर की ज़िंदगी जीने की कानूनन हकदार है।
समर्पित रिश्ते में रहने का अधिकार:- एक महिला को ये सम्पूर्ण अधिकार है कि पति-पत्नी के रिश्ते में रहते हुए उसका पति उसके प्रति ईमानदार रहे व रिश्ते के प्रति समर्पित रहे, पत्नी के जीवनकाल में कोई भी पुरुष दूसरी शादी नही कर सकता, यदि वह ऐसा करता है तो भरतीय दण्ड संहिता की धारा 494 के अंतर्गत कानूनन जुर्म होता है। पति पत्नी दोनों की ज़िम्मेदारी है कि एक दूसरे के रिश्ते के प्रति ईमानदार रहे और एक दूसरे का सम्मान करें।।
सम्मान पूर्वक जीवन जीने का अधिकार- देश के संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी को सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार है तो शादी के बाद भी महिला को ये अधिकार उसी तरह मिला रहता है ,ससुराल के किसी भी सदस्य को ये कोई अधिकार नही है कि महिला के जीवन को कमतर करके देखे और उसे गरिमामयी ज़िन्दगी से मरहूम करे।।
घर मे रहने का अधिकार:- शादी के बाद एक महिला को ये सम्पूर्ण अधिकार है कि वह जिस घर मे विदा होकर गयी है और जहां उसका पति रहता है महिला उसी घर मे रहे, ये बात कोई मायने नही रखती की घर पुश्तैनी है या दादा दादी या नाना नानी का है या फिर घर किराए का है। जहां उसका पति रहता है वहां पर महिला को कानूनी रूप से रहने का पूरा अधिकार प्राप्त होता है। घरेलू हिंसा कानून सन 2005 आने के बाद ये और स्पष्ट हो गया है कि पति की साझी गृहस्ती में रहने के लिए पत्नी को अधिकार प्राप्त है।
भरण पोषण का अधिकार:- दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत एक महिला को ये अधिकार होता है कि वह यदि अपना व अपने बच्चों का भरण पोषण करने में सक्षम नही है तो अपने पति से भरण पोषण की धनराधि की मांग करे। एक महिला शादी के बाद अपने पति के जीवन स्तर की ज़िंदगी जीने की कानूनन हकदार है।
समर्पित रिश्ते में रहने का अधिकार:- एक महिला को ये सम्पूर्ण अधिकार है कि पति-पत्नी के रिश्ते में रहते हुए उसका पति उसके प्रति ईमानदार रहे व रिश्ते के प्रति समर्पित रहे, पत्नी के जीवनकाल में कोई भी पुरुष दूसरी शादी नही कर सकता, यदि वह ऐसा करता है तो भरतीय दण्ड संहिता की धारा 494 के अंतर्गत कानूनन जुर्म होता है। पति पत्नी दोनों की ज़िम्मेदारी है कि एक दूसरे के रिश्ते के प्रति ईमानदार रहे और एक दूसरे का सम्मान करें।।
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